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नोएडा

भारत का सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल: मोदी सरकार की कूटनीतिक दूरदर्शिता का ऐतिहासिक उदाहरण: स्तंभकार अभिषेक गुप्ता

Abhishek Gupta on All party delegation of India: मोदी सरकार की रणनीति और भारत ने जो आंतकवाद के खिलाफ करारा जवाब दिया है। वह शानदार है इसी को लेकर राजनीतिक विश्लेषक और स्तंभकार अभिषेक गुप्ता ने ये पूरा लेख लिखा है।

नोएडाJun 11, 2025 / 10:47 am

Bhuwan Sahu

Abhishek Gupta

स्तंभकार अभिषेक गुप्ता ने भारत का सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल पर लिखा लेख

22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले के बाद भारत के लिए निर्णायक और दूरदर्शी प्रतिक्रिया देना अनिवार्य हो गया था। मोदी सरकार ने न केवल सैन्य स्तर पर ऑपरेशन सिंदूर के जरिए आतंकवादियों को करारा जवाब दिया, बल्कि वैश्विक जनमत को अपने पक्ष में करने के लिए एक ऐतिहासिक कूटनीतिक पहल भी की। सरकार ने सात सर्वदलीय संसदीय प्रतिनिधिमंडल 33 देशों और यूरोपीय संघ मुख्यालय भेजे, जिसने भारत की आतंकवाद विरोधी नीति को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मजबूती से प्रस्तुत किया और देश की छवि को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। यह कदम न केवल सरकार की नीतिगत दृढ़ता का प्रमाण है, बल्कि भारत के लोकतांत्रिक ढांचे और राजनीतिक परिपक्वता का भी परिचायक है।

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इस पहल की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता इसकी सर्वदलीय प्रकृति रही। सरकार ने 51 सांसदों और पूर्व मंत्रियों को प्रतिनिधिमंडलों में शामिल किया, जिनमें 31 सत्तारूढ़ एनडीए से और 20 विपक्षी दलों से थे। भाजपा के रविशंकर प्रसाद, कांग्रेस के शशि थरूर, डीएमके की कनिमोझी, एनसीपी की सुप्रिया सुले जैसे नेता एक मंच पर आए। यह दुर्लभ राजनीतिक एकता दर्शाती है कि आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर भारत एक स्वर में बोलता है। मोदी सरकार की यह नेतृत्व क्षमता और कूटनीतिक समझ का प्रमाण है कि उसने राजनीतिक विविधता के बावजूद राष्ट्रीय हितों के लिए सर्वसम्मति बनाई। विपक्षी नेताओं को शामिल कर सरकार ने यह भी दिखाया कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर राजनीति से ऊपर उठकर एकजुटता दिखाई जा सकती है।
33 देशों का चयन पूरी तरह रणनीतिक था। सरकार ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी और अस्थायी सदस्यों, मध्य-पूर्व, दक्षिण-पूर्व एशिया, अफ्रीका, अमेरिका जैसे क्षेत्रों के प्रभावशाली देशों और प्रवासी भारतीयों की बड़ी आबादी वाले देशों को चुना। अमेरिका, फ्रांस, जापान, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, रूस, ब्राज़ील, इटली, जर्मनी, इंडोनेशिया, मलेशिया, कतर, यूएई, इथियोपिया, मिस्र, स्पेन, ग्रीस, स्लोवेनिया, लातविया, पनामा, गुयाना, कोलंबिया, बहरीन, कुवैत, अल्जीरिया, कांगो, लाइबेरिया, सिएरा लियोन, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर जैसे देशों तक भारत की बात पहुँचाकर सरकार ने वैश्विक कूटनीतिक दबाव को अधिकतम किया। इससे भारत का पक्ष उन सभी महत्वपूर्ण वैश्विक मंचों तक पहुँचा, जहां से पाकिस्तान के दुष्प्रचार का प्रभाव कम किया जा सकता था।
प्रतिनिधिमंडलों ने हर देश में भारत की आतंकवाद के प्रति “शून्य सहिष्णुता” नीति को स्पष्ट किया। पहलगाम हमले और ऑपरेशन सिंदूर की पृष्ठभूमि में भारत की सैन्य कार्रवाई को संयमित, लक्षित और अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुरूप बताया गया। भारत ने यह भी स्पष्ट किया कि उसकी कार्रवाई केवल आतंकवादी ठिकानों के खिलाफ थी, आम नागरिकों या किसी देश की संप्रभुता के खिलाफ नहीं। इस संदेश का असर यह हुआ कि सऊदी अरब, इटली, इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका, फ्रांस, अमेरिका, इज़राइल, अफगानिस्तान, ताइवान जैसे देशों ने भारत के रुख का खुलकर समर्थन किया। यह मोदी सरकार की कूटनीतिक सफलता है कि इतने बड़े स्तर पर अंतरराष्ट्रीय समर्थन मिला।
प्रतिनिधिमंडलों का एक प्रमुख उद्देश्य पाकिस्तान द्वारा फैलाए जा रहे दुष्प्रचार का जवाब देना था। भारतीय सांसदों ने विदेश सरकारों, सांसदों और मीडिया से संवाद कर तथ्यों को रखा, पाकिस्तान की आतंकवाद में संलिप्तता उजागर की और कश्मीर मुद्दे के अंतरराष्ट्रीयकरण की कोशिशों को विफल किया। मुस्लिम देशों में भी भारत की शांति, बहुलता और कानून के प्रति प्रतिबद्धता को रेखांकित किया गया। कई देशों ने भारत के तथ्यों को स्वीकार करते हुए पाकिस्तान के पक्ष में दिए गए अपने बयानों को वापस लिया, जैसे कोलंबिया ने भारतीय प्रतिनिधिमंडल के संवाद के बाद अपना पूर्व बयान बदलकर पहलगाम हमले की निंदा की। यह मोदी सरकार की सक्रिय कूटनीति की सीधी उपलब्धि है।
इस कूटनीतिक अभियान के ठोस परिणाम सामने आए। दर्जनों प्रभावशाली देशों ने भारत के आत्मरक्षा के अधिकार और आतंकवाद के विरोध में खुले समर्थन की घोषणा की। अमेरिका, इज़राइल, अफगानिस्तान, ताइवान जैसे देशों ने भारत के पक्ष में स्पष्ट बयान दिए। यूरोपीय संघ मुख्यालय में भी भारत के रुख को सराहा गया और आतंकवाद के खिलाफ सहयोग का आश्वासन मिला। इससे पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अलग-थलग करने में मदद मिली और भारत की नैतिक स्थिति और मजबूत हुई।
प्रतिनिधिमंडलों ने न केवल भारत के आतंकवाद विरोधी पक्ष को मजबूत किया, बल्कि देश की छवि को भी एक जिम्मेदार, संयमित और प्रौढ़ लोकतंत्र के रूप में स्थापित किया। सरकार की संयमित सैन्य कार्रवाई, केवल आतंकी ढांचों को निशाना बनाना और नागरिकों को नुकसान न पहुँचाना, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया। इससे भारत की नैतिक और कूटनीतिक विश्वसनीयता बढ़ी। भारत की सॉफ्ट पावर—लोकतंत्र, विविधता और आर्थिक शक्ति—का भी प्रभावी उपयोग किया गया।
देश के भीतर मोदी सरकार की इस रणनीति की व्यापक सराहना हुई। सफल सैन्य कार्रवाई और ठोस कूटनीतिक पहल ने सरकार की राष्ट्रीय हितों की रक्षा की क्षमता को उजागर किया। विपक्षी नेताओं की भागीदारी ने राजनीतिक परिपक्वता और सर्वसम्मति का संदेश दिया, जिससे सरकार की संसद और जनता में स्थिति और मजबूत हुई। इससे यह भी सिद्ध हुआ कि मोदी सरकार न केवल निर्णायक है, बल्कि समावेशी और लोकतांत्रिक भी है।
यह सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल पहल भारत की विदेश नीति में नया मानक स्थापित करती है। यह दिखाता है कि सैन्य ताकत के साथ-साथ कूटनीतिक संवाद भी आवश्यक है। मोदी सरकार ने वैश्विक समर्थन जुटाकर और विरोधी प्रचार का जवाब देकर भविष्य के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। यह पहल आने वाले वर्षों में भारत की विदेश नीति के लिए एक आदर्श बन चुकी है।
सारांशतः, ऑपरेशन सिंदूर के बाद 33 देशों में भेजे गए सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल मोदी सरकार की कूटनीतिक विजय के रूप में स्थापित हुए हैं। इससे भारत की एकता, संकल्प और वैश्विक नेतृत्व क्षमता का प्रदर्शन हुआ। सैन्य निर्णायकता और कूटनीतिक समझ का यह संयोजन भारत की सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय छवि को नई ऊँचाई देता है। यह पहल दुनिया को स्पष्ट संदेश देती है कि भारत आतंकवाद से डरता नहीं, बल्कि सभी संसाधनों—सैन्य, कूटनीतिक और राजनीतिक—का उपयोग कर अपनी संप्रभुता की रक्षा करता है। आज जब दुनिया आतंकवाद की चुनौती से जूझ रही है, भारत का यह उदाहरण जिम्मेदार और प्रभावी राष्ट्र-नीति का आदर्श बन चुका है।

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