ट्रंप ने मार्च में शिक्षा सचिव लिंडा मैकमहोन को शिक्षा विभाग को बंद की प्रक्रिया शुरू करने के निर्देश दिए थे और अप्रेल में विभाग ने कर्मचारियों को पेड लीव पर भेज दिया था। जज मयोंग जौन के आदेश से जून में इनकी छंटनी रुकी रही, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने इस पर से रोक हटा दी है। छंटनी के बाद विभाग का स्टाफ आधे से भी कम रह जाएगा। जस्टिस सोतोमेयर समेत तीन जजों ने इस फैसले का विरोध करते हुए इसे अमरीकी संविधान की शक्ति पृथक्करण की भावना पर हमला बताया है।
आलोचक ट्रंप प्रशासन पर अवैध रूप से संघीय विभाग को बंद करने का आरोप लगाते हुए चेता रहे हैं कि इससे छात्रों के नागरिक अधिकार, विशेष शिक्षा और छात्रवृत्ति जैसी सेवाएं बुरी तरह प्रभावित होंगी। जबकि प्रशासनिक अधिकारियों का कहना है कि वैधानिक कर्तव्यों का पालन अभी भी किया जाएगा, लेकिन वे यह भी स्वीकारते हैं कि ‘कई विवेकाधीन कार्यों को राज्यों पर छोड़ देना बेहतर होगा।’
क्या संविधान को चुनौती दे रहे ट्रंप? यूएस सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से ट्रंप प्रशासन की विवादास्पद ‘कटौती नीति’ को जारी रखने की अनुमति मिल गई है, बावजूद इसके कि कानूनी चुनौतियां जारी हैं। आइए जानते हैं, क्या हैं विवाद से जुड़े चार जरूरी सवाल…
आलोचक फैसले को लेकर चिंतित क्यों? न्यायमूर्ति सोतोमेयर ने चेताया है कि यह फैसला ‘संवैधानिक शक्ति संतुलन के लिए गंभीर खतरा’ है। आलोचकों का मानना है कि इससे कार्यपालिका को मनमाने तरीके से एजेंसियां खत्म करने की छूट मिल जाएगी। शिक्षा विभाग 1979 में कांग्रेस द्वारा बनाया गया था। अमरीकी संविधान के अनुसार, केवल कांग्रेस ही किसी संघीय एजेंसी को बना या समाप्त कर सकती है। ट्रंप की नीति पर कोर्ट की मुहर संविधान को चुनौती मानी जा रही है।
क्या कांग्रेस हस्तक्षेप कर सकती है? कांग्रेस शिक्षा विभाग को सीमित करने या कर्मचारियों की छंटनी के फैसले को पलटने के लिए हस्तक्षेप कर सकती है, लेकिन मौजूदा राजनीतिक माहौल में ऐसा होना नामुमकिन-सा लगता है। हाउस पर रिपब्लिकंस का नियंत्रण है, और सीनेट में डेमोक्रेट्स का बहुमत मामूली है।
कटौती क्या शिक्षा विभाग तक सीमित है? अदालत का फैसला कार्यकारी शक्ति के व्यापक विस्तार को दर्शाता है। पिछले हफ्ते ही, न्यायाधीशों ने ट्रंप को राज्य, वित्त मंत्रालय और आवास एवं शहरी विकास सहित कई अन्य विभागों में व्यापक कटौती करने की अनुमति दी थी। इस फैसले से कार्यपालिका को अन्य विभागों को भी कमजोर करने का रास्ता मिल सकता है। स्पष्ट है कि कटौती नीति शिक्षा विभाग तक ही सीमित नहीं है।
संवैधानिक प्रश्न उठाने वाला मामला क्यों? शिक्षा विभाग का मामला यह महत्वपूर्ण संवैधानिक प्रश्न उठाने वाला है कि कोई राष्ट्रपति क्या बिना कांग्रेस की मंजूरी के, सिर्फ कर्मचारियों की छंटनी करके, किसी पूरी एजेंसी को दरकिनार कर सकता है? यदि इसका जवाब हां है, तो भविष्य के राष्ट्रपति – चाहे किसी भी पार्टी के हों – बिना कांग्रेस की मंजूरी केवल स्टाफ हटाकर किसी भी संघीय एजेंसी को निष्क्रिय, खोखला बना सकेंगे। इससे संघीय ढांचा अस्थिर हो सकता है।
भारतः शिक्षा समवर्ती सूची का विषय भारत में शिक्षा समवर्ती सूची में शामिल है। व्यावहारिक रूप से राष्ट्रीय शिक्षा नीति, पाठ्यक्रम निर्धारण, भाषाई नीति, योजनागत वित्त पोषण और केंद्रीय शिक्षण संस्थानों के संचालन के मामलों में केंद्र की प्रमुख भूमिका रहती है जबकि राज्य अपने स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालयों की स्थापना और संचालन, शिक्षक नियुक्ति के साथ अपने-अपने माध्यमिक शिक्षा बोर्डों की परीक्षाएं, पाठ्यक्रम और मूल्यांकन तय करते हैं। जब-जब किसी विषय पर केंद्र और राज्य में मतभेद होता है, तो अनुच्छेद 254 के तहत केंद्र का कानून प्रभावी होता है, जब तक कि राष्ट्रपति उस राज्य के कानून को मंजूरी न दे।