मेडिकल बोर्ड ने दिल्ली हाईकोर्ट को सौंपी रिपोर्ट
पीड़िता की उम्र महज 14 साल है। पीड़िता के साथ रिश्ते में भाई लगने वाले शख्स ने दुष्कर्म किया था। जिससे वह गर्भवती हो गई। पीड़िता के गर्भवती होने के बाद उसके माता-पिता ने भी उसे छोड़ दिया। इसके बाद रिश्ते की चाची उसकी देखभाल कर रही थीं। जो उस आरोपी की मां भी हैं, जिसने पीड़िता से दुष्कर्म किया था। पीड़िता ने पहले अपना गर्भपात कराने के लिए अपनी चाची के साथ अदालत का दरवाजा खटखटाया था। चाची ने अदालत में खुद को पीड़िता की अभिभावक के तौर पर पेश किया था। इस मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने मेडिकल बोर्ड की राय मांगी। बोर्ड ने अदालत को बताया कि 30 सप्ताह की गर्भावस्था को समाप्त करना संभव नहीं है, क्योंकि इससे स्वास्थ्य संबंधी जटिलताएं पैदा हो सकती हैं।
पीड़िता के भविष्य को लेकर गंभीर हुआ मेडिकल बोर्ड
बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि समय से पहले ‘सी-सेक्शन’ या मेडिकल तरीके से गर्भपात कराने से भविष्य में उसे गंभीर प्रसूति संबंधी समस्याएं हो सकती हैं और उसकी प्रजनन क्षमता पर भी बुरा असर पड़ सकता है। इन जोखिमों को जानने के बाद पीड़िता और उसकी अभिभावक बच्चे को जन्म देने के लिए सहमत हो गए। मेडिकल बोर्ड ने अदालत को यह भी बताया कि वर्तमान गर्भावस्था अवधि में बच्चा जीवित पैदा होगा। बोर्ड के अनुसार, नाबालिग और उसके अभिभावक अगले चार से छह सप्ताह तक गर्भावस्था जारी रखने के लिए तैयार हैं।
अदालत का हस्तक्षेप और बाल कल्याण समिति की भूमिका
जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा ने 18 अगस्त को दिए अपने आदेश में कहा कि ‘इन विशिष्ट परिस्थितियों के साथ, यह अदालत अत्यधिक सावधानी के साथ यह मानना उचित समझती है कि बच्ची को किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के तहत देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता होगी।’ न्यायाधीश ने बाल कल्याण समिति (CWC) को भी निर्देश दिया कि वह स्वतंत्र रूप से पीड़िता से बात करे, उसकी राय जाने, और अंतिम आदेश पारित करने से पहले अदालत को सूचित करे। अदालत ने कहा कि पीड़िता की इच्छा के विरुद्ध गर्भपात का निर्देश नहीं दिया जा सकता।
20 अगस्त को होगी मामले में अगली सुनवाई
पीड़िता फिलहाल राजधानी के एक आश्रय गृह में रह रही है। अदालत ने इस मामले की अगली सुनवाई 20 अगस्त के लिए तय की है, जब बाल कल्याण समिति अपनी रिपोर्ट पेश करेगी। यह मामला तब सामने आया जब पीड़िता को अगस्त की शुरुआत में अपनी गर्भावस्था का पता चला। तब तक वह 27 सप्ताह की गर्भवती हो चुकी थी। डॉक्टरों ने तब मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) अधिनियम के तहत 20 से 24 सप्ताह की सीमा का हवाला देते हुए अदालत जाने की सलाह दी थी।