वैज्ञानिकों के मुताबिक यह तकनीक स्कैनिंग के लिए ट्रेकर का इस्तेमाल कर शरीर में मौजूद कैंसर सेल्स को लाइट अप देती है। इससे डॉक्टरों को साफ-साफ दिखता है कि कैंसर कहां है। इसमें रेडिएशन बहुत कम होता है, रिपोर्ट जल्दी मिलती है और कीमत भी कम है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह तकनीक उन महिलाओं के लिए फायदेमंद होगी, जिनके ब्रेस्ट टिशू घने होते हैं। यह दशा करीब 40% महिलाओं में पाई जाती है। इनमें ब्रेस्ट कैंसर का खतरा ज्यादा होता है। इस तकनीक में कैडमियम जिंक टेलुराइड डिटेक्टर और एडवांस इलेक्ट्रॉनिक्स का इस्तेमाल किया गया है। इससे यह पारंपरिक 2डी स्कैन को सटीक 3डी इमेज में बदल देती है।
क्लीनिकल ट्रायल जल्द यूएफएमबीआइ तकनीक का क्लीनिकल ट्रायल जल्द शुरू किया जाएगा। यह तकनीक न सिर्फ ब्रेस्ट कैंसर स्कैनिंग में क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है, बल्कि न्यूक्लियर मेडिसिन के अन्य क्षेत्रों में भी उपयोगी साबित हो सकती है। अगर शुरुआती स्टेज में कैंसर का पता चल जाए तो ट्रीटमेंट से इसे ठीक किया जा सकता है।
कैसे करती है काम डॉक्टर रेडियोएक्टिव दवा नस में इंजेक्ट करते हैं। दवा स्तनों में जमा होती है, जहां कैंसर सेल्स हो सकते हैं। गामा कैमरा दवा से निकलने वाले रेडिएशन को पकड़ता है। जिन हिस्सों में ज्यादा रेडिएशन होता है, वे तस्वीरों में साफ दिखते हैं। इससे पता चल सकता है कि वहां कैंसर है या नहीं।