यह हादसा 14 मार्च की रात करीब 11:35 बजे हुआ था। द लीफलेट की रिपोर्ट के मुताबिक, जांच रिपोर्ट में बताया गया है कि आग लगने के बाद मौके पर आधी जली हुई ₹500 के नोटों की गड्डियां देखी गईं। इस जांच कमेटी में पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस जीएस संधावालिया और कर्नाटक हाई कोर्ट की जज अनु शिवरामन शामिल थीं। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा के उस दावे को भी खारिज कर दिया है। जिसमें उन्होंने आग लगने की घटना और नकदी मिलने को अपने खिलाफ साजिश बताया था। यह रिपोर्ट अब लीक हो गई है।
फायर सर्विस, पुलिस अधिकारियों के बयान दर्ज
रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस वर्मा के घर के स्टोररूम में कैश मिला था। बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार कमेटी की रिपोर्ट में कम से कम दस चश्मदीदों ने जले हुए कैश को देखा था। ये सभी दिल्ली फायर सर्विस और दिल्ली पुलिस के अधिकारी थे। जांच कमेटी ने सभी चश्मदीदों के बयानों को न केवल लिखित रूप में दर्ज किया, बल्कि वीडियो रिकॉर्डिंग भी की। ताकि कोई भी व्यक्ति आगे चलकर इन बयानों को झूठा साबित न कर सके। स्टोर रूम से जलती हुई नकदी हटाए जाने का उल्लेख भी किया गया है। जो 15 मार्च की सुबह की पहली पहर की घटना मानी गई है। स्टोर रूम में नकदी देखने वाले 10 चश्मदीद कौन हैं?
अंकित सहवाग (फायर ऑफिसर, DFS) ने टॉर्च की रोशनी में आधे जले हुए 500 के नोटों का ढेर स्टोर रूम में देखा। पानी की वजह से नोट भीग चुके थे। जांच कमेटी को दूसरे गवाह प्रदीप कुमार (फायर ऑफिसर, DFS) ने बताया कि स्टोर रूम में घुसते ही उनके पैर में कुछ लगा। झुककर देखा तो यह 500 रुपये के नोटों का ढेर था। उन्होंने बाहर खड़े सहयोगियों को इसकी जानकारी दी। मनोज मेहलावत (स्टेशन ऑफिसर, DFS) ने भी घटनास्थल की तस्वीरें जांच कमेटी को सौंपी हैं। उन्होंने आग बुझाने के बाद खुद अधजली नकदी देखी थी। यह वही फायर अधिकारी हैं। जिनकी आवाज वीडियो में ‘महात्मा गांधी में आग लग रही है भाई’ कहते हुए सुनी गई।
जांच कमेटी ने अपने चौथे गवाह के रूप में भंवर सिंह (ड्राइवर, DFS) का बयान शामिल किया है। इसमें उन्होंने बताया कि अपने 20 साल के फायर सर्विस करियर में पहली बार उन्होंने इतने बड़े पैमाने पर नकदी देखी है। जबकि प्रविंद्र मलिक (फायर ऑफिसर, DFS) ने अपने बयान में कहा है कि प्लास्टिक बैग में भरी हुई नकदी आग में जल चुकी थी। लिकर कैबिनेट के कारण आग और भड़क गई थी। वहीं सुमन कुमार (असिस्टेंट डिविजनल ऑफिसर, DFS) ने वरिष्ठ अधिकारी को नकदी मिलने की सूचना दी, लेकिन उन्हें ऊपर से आदेश मिला कि बड़े लोग हैं। आगे कार्रवाई मत करो।
तुगलक रोड थाना प्रभारी का भी बयान दर्ज
सातवें गवाह के रूप में जांच कमेटी ने राजेश कुमार (तुगलक रोड थाना, दिल्ली पुलिस) का बयान दर्ज किया है। आग बुझने के बाद उन्होंने खुद अधजली नकदी देखी और वहां लोगों को वीडियो बनाते हुए देखा। जबकि सुनील कुमार (इंचार्ज, ICPCR) ने भी टॉर्च से स्टोर रूम में झांककर जली-अधजली नकदी देखी और तीन वीडियो बनाए। इसके अलावा रूप चंद (हेड कांस्टेबल, तुगलक रोड थाना) ने SHO के निर्देश पर मोबाइल से पूरी घटना रिकॉर्ड की। उन्होंने देखा कि नोट स्टोर रूम के दरवाजे से लेकर पीछे की दीवार तक फैले हुए थे। दसवें गवाह के रूप में तुगलक रोड थाना प्रभारी उमेश मलिक का बयान दर्ज है। उन्होंने 1.5 फीट ऊंचे जले हुए 500 रुपये के नोटों के ढेर को देखा। कुछ नोट गड्डियों में बंधे थे तो कुछ पानी में बिखर चुके थे। रिपोर्ट में शामिल किए गए ये मुख्य बिंदु
द लीफलेट की रिपोर्ट के मुताबिक, चंडीगढ़ की केंद्रीय फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला द्वारा प्रमाणित वीडियो रिकॉर्डिंग और तस्वीरों ने गवाहों के बयानों की पुष्टि की है, जिन्हें जस्टिस वर्मा ने नकारा नहीं। वहीं, दिल्ली अग्निशमन सेवा और पुलिस के दस अधिकारियों ने उनके स्टोररूम में जली हुई नकदी देखे जाने की पुष्टि की है। कमेटी ने पाया कि उनके कर्मचारी उनके प्रति वफादार हैं और उनके खिलाफ गवाही नहीं देंगे, जबकि स्वतंत्र गवाहों के बयान विपरीत हैं। जस्टिस वर्मा का CCTV डेटा खोने का दावा खारिज किया गया, क्योंकि उनके पास उसे सुरक्षित करने का पर्याप्त समय था। उनकी बेटी दीया वर्मा द्वारा दिए गए बयान भी गलत पाए गए। जिनमें उन्होंने नकदी और वीडियो को लेकर भ्रामक जानकारी दी और बाद में पलटने की कोशिश की।
जस्टिस वर्मा ने नहीं दर्ज कराई रिपोर्ट
कमेटी ने यह भी स्पष्ट किया कि स्टोररूम सार्वजनिक रूप से सुलभ नहीं था और केवल जस्टिस वर्मा व उनके परिजनों को ही उसकी पहुंच थी। जिससे ‘नकदी फंसाने’ का तर्क अस्वीकार कर दिया गया। घटना की रिपोर्ट न करना और CCTV फुटेज न लेना, साथ ही ट्रांसफर प्रस्ताव को बिना विरोध स्वीकार करना, जस्टिस वर्मा की भूमिका पर सवाल खड़े करता है। उनके द्वारा दिए गए साजिश के सिद्धांत को खारिज कर दिया गया क्योंकि उन्होंने किसी विशेष व्यक्ति का नाम नहीं लिया और न ही कारण बताया कि उन्हें निशाना क्यों बनाया गया। अंततः, वे न केवल जली हुई नकदी का हिसाब देने में विफल रहे, बल्कि इसके स्रोत और स्वामित्व को लेकर भी स्पष्टता नहीं दे सके। कमेटी ने यह भी निष्कर्ष निकाला कि उनके दो विश्वसनीय कर्मचारियों ने ही नकदी हटाने में सहायता की थी।
जांच कमेटी ने तय की जिम्मेदारी?
जांच समिति ने यह माना कि स्टोर रूम की पहुंच जस्टिस वर्मा और उनके परिवार के पास थी और नकदी उनके “छिपे या प्रत्यक्ष नियंत्रण” में थी। रिपोर्ट में बताया गया कि जली हुई नकदी को उनके स्टाफ राहिल शर्मा, हनुमान प्रसाद और निजी सचिव राजिंदर सिंह कार्की द्वारा हटाया गया। रिपोर्ट में एक गवाह के हवाले से कहा गया है “मैंने देखा कि कमरे के फर्श पर ₹500 के नोटों का ढेर पड़ा था। यह मेरे जीवन में पहली बार था जब मैंने इतनी बड़ी मात्रा में नकदी एक साथ देखी।” जबकि रिपोर्ट में एक अन्य वीडियो का भी जिक्र किया गया है। इसमें एक दमकलकर्मी कहता है, “महात्मा गांधी में आग लग रही है” यह 500 रुपये के नोटों में गांधीजी की तस्वीर की ओर इशारा करता है। न्यायपालिका पर भरोसे की चोट
समिति ने यह भी कहा कि जस्टिस वर्मा और उनके परिवार ने न तो किसी थाने में शिकायत दर्ज कराई, न ही CCTV फुटेज को बचाने की कोशिश की। इससे यह साबित होता है कि उन्होंने जानबूझकर साक्ष्य को नष्ट करने की कोशिश की। रिपोर्ट में लिखा गया है “एक उच्च न्यायिक अधिकारी से यह अपेक्षा की जाती है कि उसका चरित्र और आचरण निष्कलंक हो। अगर जनता का भरोसा हिलता है तो यह पूरे न्याय तंत्र की नींव को कमजोर करता है।” तीन जजों की कमेटी ने अपनी 64 पन्नों की रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग चलाने की कार्रवाई शुरू करने की अनुशंसा की है।
जस्टिस वर्मा का जवाब
जस्टिस वर्मा ने सभी आरोपों को साजिश बताते हुए खारिज किया है। जो अब इलाहाबाद हाईकोर्ट में स्थानांतरित किए जा चुके हैं। उन्होंने इस्तीफा देने या स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने से इनकार कर दिया है। उन्होंने यह भी कहा कि जांच की प्रक्रिया “मूल रूप से अन्यायपूर्ण” है। दूसरी ओर जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में न केवल एक जस्टिस वर्मा पर गंभीर सवाल उठाए हैं, बल्कि न्यायपालिका की पारदर्शिता और विश्वसनीयता पर भी बहस छेड़ दी है।