कोर्ट ने सहानुभूति का रुख अपनाया
कोर्ट ने इस मामले में सहानुभूति का रुख अपनाते हुए इसे नासमझी का विद्रोह (मिसजज्ड रैबेलियन) और प्रेम भ्रम (रोमांटिक डिल्यूजन) का मामला बताया। जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस अरविंद कुमार की बेंच ने आरोपियों की अपील खारिज करते हुए यह आदेश दिया। अपीलकर्ता शुभा शंकर ने 2003 में प्रेमी अरुण और दो अन्य लोगों दिनाकरण और वेंकटेश की मदद से अपने मंगेतर गिरीश की हत्या कर दी थी। कोर्ट ने कहा कि घटना के समय ज्यादातर आरोपी किशोर थे और अगर परिवार ने महिला पर शादी के लिए दबाव नहीं डाला होता, तो एक निर्दोष युवक की जान बच जाती। बेंच ने कहा कि पारिवारिक निर्णय की मजबूरी में एक युवा महत्वाकांक्षी लड़की के मन में भयंकर उथल-पुथल पैदा कर दी। उसका मानसिक विद्रोह और रूमानियत एक निर्दोष युवक की दुखद हत्या का कारण बना। जिसने तीन अन्य लोगों के जीवन को नष्ट कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि वह मामले को एक अलग परिप्रेक्ष्य से देखना चाहती है, ताकि अपीलकर्ताओं को नया जीवन मिल सके।
परििस्थति ध्यान में रखकर क्षमादान पर विचार
कोर्ट ने कहा कि हम अपीलकर्ताओं को कर्नाटक के राज्यपाल के समक्ष उचित याचिका दायर करने की अनुमति देकर उनके क्षमादान के अधिकार को सुगम बनाना चाहेंगे। हम राज्यपाल से केवल इस पर विचार करने का अनुरोध करेंगे। हमें आशा और विश्वास है कि मामले से संबंधित प्रासंगिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए विचार किया जाएगा।