दोपहर के 12 बजे थे, तारीख थी 16 मई। मैं पुलवामा जिले के त्राल-अवंतीपुरा के नादेर गांव में था। 15 मई को इसी गांव में 12 घंटे चले सेना के ऑपरेशन में तीन आतंकियों को ढेर किया गया था। मैं उस एनकाउंटर साइट पर पहुंचा, जहां तीनों आतंकवादी मारे गए थे। यहां दो महिलाएं हलीमा और सलीमा बैठी थीं। मैंने समझा उसी परिवार की हैं, लेकिन उन्होंने बताया, हम गांव के हैं। पहले बातचीत के लिए तैयार नहीं थी, लेकिन परिचय के बाद कहा, हमारे भी बच्चे हैं।
लड़के पढ़ाई करके आगे बढ़ते हैं, तो खुशी होती है। हथियार उठाना एक जाल है। एक बार जो इसमें फंसा, उसका समाज में वापस लौटना मुश्किल होता है। इनका अंजाम देखने के बाद अपने बच्चों के बारे में सोचकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। ऐसी कौन मां होगी जो अपने जवान बेटे को गोलियों से छलनी होता देखना चाहेगी? ये लडक़े बहकावे में आकर घरवालों की बात नहीं मानते। जो इनके पीछे हैं, उन्हें जड़ से खत्म करना ही होगा, तभी यहां अमन और सुकून आएगा।