भाषा की लड़ाई सीमा पार कर चुकी है
उन्होंने एक्स पर लिखा कि अब भाषा अधिकारों की लड़ाई तमिलनाडु राज्य की सीमा पार कर चुकी है। यह महाराष्ट्र तक पहुंच गई है। तमिलनाडु की जनता और द्रविड़ मुनेत्र कड़कम (DMK) ने पीढ़ी दर पीढ़ी हिंदी थोपने के खिलाफ जो संघर्ष किया है। वह अब राज्य से बाहर निकल चुका है। महाराष्ट्र में विरोध की लहर की तरह फैल रहा है। स्टालिन ने कहा कि तमिलनाडु के लोग पहले भी विरोध कर चुके हैं अब भी करेंगे। तमिल उनकी मातृभाषा है। वह किसी भी हालत में इसे पीछे नहीं जाने देंगे। दरअसल, शनिवार को मुंबई में वॉयस ऑफ मराठी नाम से एक रैली हुई। इसमें महाराष्ट्र सरकार द्वारा तीन भाषा नीति को वापस लाने का स्वागत किया गया। उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे सालों बाद एक मंच पर आए। उन्होंने एक दूसरे को गले लगाया। कहा कि अब दूरियां खत्म हो गई हैं। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में मराठी भाषा को प्राथमिकता मिलनी चाहिए। हिंदी को किसी पर थोपना नहीं चाहिए।
निकाय चुनाव में बिगड़ सकते हैं समीकरण
कहा जा रहा है कि यदि दोनों भाई साथ आए और मनसे और शिवसेना के बीच गठबंधन होता है तो यह महाराष्ट्र की राजनीति में नए समीकरण को जन्म दे सकता है। मुंबई, पुणे, नासिक और ठाणे जैसे मराठी बाहुल्य इलाके में दोनों दलों का मजबूत जनाधार है। नगरीय निकाय चुनाव में दोनों अच्छा खासा प्रभाव डाल सकते हैं। वहीं, ठाकरे बंधुओं की नजदीकी महाविकास आघाड़ी (MVA) के लिए भी सिरदर्द बन सकती है। राज ठाकरे की मस्जिदों में लाउडस्पीकर को लेकर की गई टिप्पणियों से अल्पसंख्यक मतदाता नाराज़ हो सकते हैं और छिटक सकते हैं।