संविधान का उल्लंघन है
ADR ने अपनी याचिका में कहा कि चुनाव आयोग का यह निर्णय संविधान के कई अनुच्छेदों का उल्लंघन करता है। ADR ने कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 14,19,21,325 और 326 और जनप्रतिनिधित्व कानून 1950 और उसके रजिस्ट्रेशन ऑफ इलेक्टोर्स रूल 1960 के नियम 21ए का उल्लंघन है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट निर्वाचन आयोग के इस कदम पर रोक लगाए।
चुनाव आयोग का मनमाना फैसला
ADR ने कहा कि अगर चुनाव आयोग को नहीं रोका गया तो बिना उचित प्रक्रिया के मनमाने ढंग से लाखों मतदाताओं को वोटर लिस्ट से बाहर कर दिया जाएगा। इससे देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कमजोर होगा, जोकि संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है। याचिका में कहा गया है कि इसमें जिस तरह उचित प्रक्रिया का पालन किए बगैर कम समय में जो दस्तावेज मांगे गए हैं। उससे लाखों वास्तविक मतदाता, वोटर लिस्ट से बाहर हो जाएंगे।
पात्रता साबित करने की जिम्मेदारी नगारिकों पर डाल दी
NGO ने अपनी याचिका में कहा कि चुनाव आयोग ने मतदाता सूची में शामिल होने की पात्रता साबित करने की जिम्मेदारी नागरिकों पर डाल दी है। आधार और राशन कार्ड जैसे सामान्य पहचान पत्र को बाहर करके यह प्रक्रिया हाशिए पर पड़े समुदायों पर नकारात्मक असर डालेगी। संस्था ने कहा कि मतदाताओं के लिए न सिर्फ अपनी नागरिकता साबित करने के लिए, बल्कि अपने माता-पिता की नागरिकता साबित करने के लिए भी दस्तावेज पेश करने होंगे। चुनाव आयोग का यह फैसला संविधान के अनुच्छेद 326 का उल्लंघन है। चुनाव आयोग ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष सघन पुनरीक्षण को लागू करने के लिए अव्यवहारिक समय सीमा निर्धारित की है, विशेषकर निकट में नवंबर 2025 में होने वाले राज्य विधानसभा चुनावों को देखते हुए। ADR ने कहा है कि ऐसे बहुत से लोग हैं, जिनका नाम 2003 की मतदाता सूची में नहीं था। जिनके पास विशेष सघन पुनरीक्षण आदेश में मांगे गए दस्तावेज नहीं हैं।
समय सीमा बेहद कम
गैर सरकारी संगठन ने कहा कि कुछ लोग इन दस्तावेजों को प्राप्त करने में सक्षम हो सकते हैं, लेकिन तय कम समय सीमा उनके लिए बाधा बन सकती है। उन्होंने यह भी कहा गया है कि बिहार ऐसा राज्य है जहां गरीबी और पलायन का उच्च स्तर है। यहां एक बड़ी आबादी है, जिसके पास जन्म प्रमाणपत्र या अपने माता-पिता के रिकार्ड जैसे आवश्यक दस्तावेजों तक पहुंच नहीं है। साथ ही, कई इलाकों में हर साल बाढ़ आती है। गरीब व हाशिये पर समुदाय हर साल इससे पीड़ित होते हैं। उनके कई जरूरी दस्तावेज हर साल आपदा की भेंट चढ़ जाते हैं।