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नागौर

मन में आस्था और सफर का जुनून लेकर बढ़ रहे थे…76 किमी दूर गहरे पानी ने थाम दी सांसें, गांव में मातम

वो बाबा के प्रति मन में गहरी आस्था और रामदेवरा तक पैदल जाने का जुनून लेकर रवाना हुए थे। उन्होंने यह सोचा था कि भादौ की दूज को बाबा के मेले में शामिल होंगे और दर्शन करेंगे, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था।

नागौरAug 21, 2025 / 02:30 pm

Kamlesh Sharma

फोटो पत्रिका

मेड़ता सिटी। वो बाबा के प्रति मन में गहरी आस्था और रामदेवरा तक पैदल जाने का जुनून लेकर रवाना हुए थे। उन्होंने यह सोचा था कि भादौ की दूज को बाबा के मेले में शामिल होंगे और दर्शन करेंगे, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। अपने घर से 76 किलोमीटर दूर तीनों युवाओं की सांसें गहरे पानी ने थाम दी…। मृतकों के गांव डांगावास स्थित वाल्मीकि बस्ती में शोक की लहर छा गई है। युवाओं के परिजनों का रो-रो कर बुरा हाल था।
डांगावास के रहने वाले नरेंद्र, सचिन और लखन उर्फ लक्की के साथ उसके तीन अन्य दोस्त रोहिसा निवासी राहुल पुत्र पप्पूराम, डांगावास निवासी चिराग पुत्र बीरमराम, गणेश पुत्र मगाराम हाथों में बाबा की ध्वज लेकर जयकारों के साथ आगे बढ़ रहे थे।
कई किमी चलने के बाद पैरों में दर्द और चेहरे पर थकान जरूर थी, लेकिन बाबा के रुणिचा धाम पहुंचने का जज्बा कम नहीं था। आपस में मौज-मस्ती करते चल रहे इन तीनों युवाओं के लिए काल का ग्रास बनी भोपागलढ़ क्षेत्र के गादेरी गांव के पास बारिश के पानी से भरी एक पत्थर की खान। नहीते समय अचानक से पानी में गिरे सचिन को बचाने के लिए नरेंद्र और लखन उर्फ लक्की भी पानी में कूद गए। तैरना नहीं आने से ही तीनों ही बहुत झटपटाए होंगे, लेकिन कहते हैं ना होनी को कोई नहीं टाल सकता। तीनों ही एक साथ गहरे पानी में डूबकर मौत के मुंह में समा गए।

गांव डांगावास में पसरा मातम

गांव के तीन युवाओं की मौत के बाद डांगावास गांव में शोक की लहर छा गई है। वाल्मीकि बस्ती में मृतक युवाओं के घर में मातम पसरा हुआ है। परिजन बार-बार रोने से बेसुध हो रहे हैं। जिन्हें रिश्तेदारों व पड़ोसियों की ओर से ढाढ़स बंधवाया । पोस्टमार्टम के बाद मृतकों के शव डांगावास पहुंचने के पश्चात गुरुवार सुबह अंतिम संस्कार किया जाएगा।

चचेरे भाई है सचिन व लक्की

जानकारी अनुसार, मृतक सचिन पुत्र अशोक और लखन उर्फ लक्की पुत्र जगदीश आपस में चचेरे भाई है। जब सचिन डूबने लगा तो लक्की भी बचाने के लिए कूद गया। लक्की की सहायता के लिए नरेंद्र ने भी छलांग लगा दी। शायद उन्हें नहीं पता था कि यह छलांग उनकी इस पैदल यात्रा की खुशी को हमेशा-हमेशा के लिए खत्म कर देगी। मृतक नरेंद्र के पिता लक्ष्मण का दो साल पहले निधन हो था।

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