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मुंबई

Malegaon Blast: ‘भगवा आतंकवाद’ साबित करने के लिए मोहन भागवत को अरेस्ट करने के आर्डर थे… पूर्व ATS अफसर महबूब का दावा

मालेगांव ब्लास्ट केस के सभी आरोपियों को अदालत ने बरी कर दिया है। अब पूर्व ATS अधिकारी ने दावा किया कि उसे आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को इस मामले में फंसाने के आदेश मिले थे। यह आदेश मालेगांव विस्फोट के तत्कालीन मुख्य जांच अधिकारी परमबीर सिंह ने दिए थे।

मुंबईAug 01, 2025 / 12:28 pm

Dinesh Dubey

Mohan Bhagwat Malegaon blast case

मालेगांव ब्लास्ट में मोहन भागवत को फंसाने की थी साजिश!

साल 2008 में महाराष्ट्र के मालेगांव में हुए बम धमाका केस में एनआईए की विशेष अदालत ने गुरुवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाया। करीब 17 साल बाद कोर्ट ने इस मामले सभी 7 आरोपियों को निर्दोष करार देते हुए बरी कर दिया। इनमें पूर्व भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर (Pragya Singh Thakur), लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित समेत अन्य आरोपी शामिल हैं। फैसला सुनाते हुए अदालत ने मालेगांव विस्फोट की जांच से जुड़े अधिकारियों पर सवाल उठाए और उनकी जांच के आदेश भी दिए।
इस फैसले के बाद अब महाराष्ट्र एटीएस के पूर्व अधिकारी रहे महबूब मुजावर (Mehboob Abdul Karim Mujawar) ने सनसनीखेज खुलासा किया है। उन्होंने दावा करते हुए कहा है कि उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत को इस केस में फंसाने के आदेश मिले थे। जिससे मालेगांव धमाके के पीछे ‘हिंदू आतंकवाद’ साबित किया जा सके। और जब उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया तो उन्हें झूठे मामले में फंसाकर निलंबित कर दिया गया।
महबूब अब्दुल करीम मुजावर 29 सितंबर 2008 को हुए मालेगांव विस्फोटों की जांच करने वाली एटीएस टीम का हिस्सा थे। पुलिस निरीक्षक रहे महबूब मुजावर ने सनसनीखेज दावा किया कि 2008 के मालेगांव हमले के दो संदिग्धों को 17 साल पहले महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधक दस्ते (Maharashtra ATS) ने मार दिया था, लेकिन उन्हें रिकॉर्ड में जीवित दिखाया गया।

‘हिंदू आतंकवाद का नैरेटिव गढ़ने की कोशिश’

मुजावर ने कहा, “मुझे साफ तौर पर कहा गया था कि मोहन भागवत को गिरफ्तार करना है और यह दिखाना है कि मालेगांव विस्फोट हिंदू आतंकवाद का हिस्सा था। इसी मकसद से मुझे जांच दल में शामिल किया गया था।”
उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें यह आदेश तत्कालीन जांच प्रमुख परमबीर सिंह और उनके वरिष्ठ अधिकारियों ने दिए थे। मुजावर के अनुसार, पूरे केस के पीछे राजनीतिक मंशा थी और इसका मकसद था हिंदू आतंकवाद की थ्योरी को गढ़ना। उन्होंने जब इसका विरोध किया तो उनके खिलाफ भ्रष्टाचार और आपराधिक मामले दर्ज किए गए।

जिंदा दिखाए मरे आरोपी

सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी मुजावर ने यह भी दावा किया कि दो कथित आरोपी संदीप डांगे और रामजी कलसांगरा की हत्या पहले ही हो चुकी थी, लेकिन उन्हें जांच में जिंदा दिखाया गया। उन्होंने कहा, “जब मैंने इसका विरोध किया और गलत काम करने से इनकार किया, तो मेरे खिलाफ झूठे केस दर्ज कर दिए गए।”
उन्होंने बताया कि मोहन भागवत को नहीं गिरफ्तार करने की वजह से उन्हें सजा दी गई और उनके 40 साल का करियर बर्बाद हो गया। बाद में मुझे निर्दोष करार देते हुए बरी कर दिया गया।

तत्कालीन गृहमंत्री पर उठाये सवाल

मुजावर ने तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे से भी जवाब मांगा है। उन्होंने पूछा कि क्या “हिंदू आतंकवाद” की थ्योरी सच में वास्तविकता पर आधारित थी या सिर्फ राजनीतिक एजेंडा था।
पूर्व ATS अधिकारी ने अदालत के फैसले का स्वागत करते हुए कहा, मुझे खुशी है कि सभी निर्दोष बरी हो गए। अदालत में साबित हो गया कि एटीएस ने गड़बड़ियां की थीं, वे अब सामने आ चुकी हैं।
बता दें कि मालेगांव शहर के भिक्कू चौक के पास रमजान के महीने में 29 सितंबर 2008 की रात 9:35 बजे एक मस्जिद के करीब बम धमाका हुआ। इस विस्फोट में छह लोगों की मौत हो गई थी और 95 लोग घायल हो गए।
मालेगांव बम विस्फोट मामले की जांच पहले महाराष्ट्र एटीएस के हाथ में थी। लेकिन बाद में इसे राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को सौंप दिया गया। एटीएस ने इस मामले में प्रज्ञा सिंह के अलावा लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित, सुधाकर द्विवेदी, मेजर रमेश उपाध्याय (रिटायर्ड), अजय रहीरकर, सुधाकर द्विवेदी, सुधाकर चतुर्वेदी और समीर कुलकर्णी को आरोपी बनाया था। मुंबई स्थित विशेष अदालत ने तीन सौ से अधिक गवाहों का परीक्षण किया। इसमें 40 गवाह बयान से मुकर गए। जबकि 40 गवाहों के बयान रद्द कर दिए गए और 40 अन्य गवाहों की मौत हो गई।

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