बता दें कि 11 जुलाई 2006 को मुंबई की भीड़भाड़ वाली लोकल ट्रेनों में एक के बाद एक कुल सात सिलसिलेवार धमाके हुए थे, जिनमें 189 लोगों की मौत हो गई थी और 800 से अधिक यात्री घायल हुए थे। इन धमाकों में विस्फोटक के तौर पर आरडीएक्स का इस्तेमाल हुआ था और इसके पीछे आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिद्दीन का हाथ बताया गया था।
इस मामले में साल 2015 में विशेष टाडा अदालत ने 15 आरोपियों में से 12 को दोषी करार दिया था। इनमें से 5 को मौत की सजा और बाकी सात को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट ने अब इस मामले में निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए सभी आरोपियों को निर्दोष करार देते हुए उन्हें जेल से रिहा करने का आदेश दिया है।
सरकारी पक्ष द्वारा पेश किए गए गवाहों और सबूतों से अदालत संतुष्ट नहीं हुआ, इसलिए सभी 12 दोषियों को बरी करने का फैसला सुनाया। जस्टिस अनिल किलोर और जस्टिसएस. चांडक की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए गए सबूतों में कोई ठोस आधार नहीं था। इसलिए सभी आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया गया। महाराष्ट्र के येरवडा, नासिक, अमरावती और नागपुर जेल में बंद आरोपियों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए कोर्ट में पेश किया गया था।
यह फैसला न केवल पीड़ित परिवारों के लिए एक झटका है, बल्कि आतंकवाद से संबंधित मामलों से सख्ती से निपटने की महाराष्ट्र सरकार की कोशिश पर भी तगड़ा अघात है। इस सीरियल बम धमाके ने पूरे देश को झकझोर दिया था।