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अब्बास अंसारी की खाली सीट पर बृजेश सिंह की एंट्री! क्या सुभासपा लेगी यह बड़ा फैसला?

ओमप्रकाश राजभर मऊ सदर विधानसभा सीट की जिद पर अड़ गए हैं, तो उसके पीछे एक वजह टिकट का आश्वासन भी बताया जा रहा है। आइए जानते हैं पूरा मामला…।

मऊJul 03, 2025 / 06:50 pm

Avaneesh Kumar Mishra

ओपी राजभर।

सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के मुखिया और उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री ओमप्रकाश राजभर ने मऊ सदर विधानसभा सीट पर अपनी मजबूत दावेदारी पेश कर दी है। यह सीट अब्बास अंसारी की विधानसभा सदस्यता रद्द होने के बाद खाली हुई है। राजभर ने मऊ में एक जनसभा को संबोधित करते हुए साफ कर दिया कि अगर उपचुनाव होते हैं, तो सुभासपा इस सीट पर पूरी ताकत से चुनाव लड़ेगी।
राजभर ने दावा किया कि 2017 के विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी मऊ सदर सीट पर केवल छह हजार वोटों के अंतर से हारी थी। इसके बाद 2022 के चुनावों में सुभासपा ने यह सीट जीती थी, जो उनकी पार्टी के लिए इस क्षेत्र में बढ़ते प्रभाव का संकेत है।

एनडीए में रहते हुए भी ताल ठोक रहे राजभर

सबसे दिलचस्प बात यह है कि ओमप्रकाश राजभर ने तो यहां तक कह दिया कि अगर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) में उन्हें यह सीट नहीं भी मिलती है, तो भी वह अपना उम्मीदवार उतारने से पीछे नहीं हटेंगे। हालांकि, उन्होंने यह भरोसा भी जताया कि NDA गठबंधन के भीतर यह सीट सुभासपा को ही मिलेगी।
ओमप्रकाश राजभर मऊ सदर विधानसभा सीट की जिद पर अड़ गए हैं, तो उसके पीछे एक वजह टिकट का आश्वासन भी बताया जा रहा है। मु्ख्तार अंसारी के परिवार की पारंपरिक सीट मऊ सदर विधानसभा से एनडीए उम्मीदवार के तौर पर माफिया बृजेश सिंह के नाम की चर्चा है। सुभासपा प्रमुख बृजेश सिंह की मऊ उपचुनाव में उम्मीदवारी और अपने रिश्तों को लेकर सवाल टाल गए। हालांकि, बृजेश सिंह के समर्थकों की जमीनी सक्रियता देख इस बात के चर्चे आम हैं कि वह राजभर की पार्टी से चुनाव लड़ेंगे।

2022 में 48000 वोट से जीती थी सीट

अब्बास अंसारी ने 2022 में समाजवादी पार्टी की सहयोगी रही सुभासपा के टिकट पर इस सीट से जीत दर्ज की थी और भाजपा के अशोक सिंह को 48,000 वोटों से हराया था। अब SBSP भाजपा की सहयोगी पार्टी है। मऊ सदर सीट पर मुख्तार अंसारी ने 1996 से लेकर 2022 तक कब्जा जमाए रखा। दो बार बसपा से (1996 और 2017), दो बार निर्दलीय (2002 और 2007), और एक बार कौमी एकता दल से (2012)। मार्च 2024 में बांदा जेल में दिल का दौरा पड़ने से मुख्तार की मौत हो गई थी।
पार्टी सूत्रों के अनुसार, भाजपा ने मुस्लिम बहुल इस सीट पर अपनी संगठनात्मक ताकत झोंक दी है। पार्टी इसी तर्ज पर जनाधार तैयार करने की योजना बना रही है जैसे उसने रामपुर और कुंदरकी में किया था, जहां 2022 और 2024 के उपचुनावों में भाजपा ने जीत दर्ज की।
वहीं, सुभासपा ने भी इस सीट से चुनाव लड़ने की इच्छा जताई है। पार्टी प्रमुख और यूपी सरकार में मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने कहा कि मऊ सदर में उनकी पार्टी मजबूत दावेदार रही है 2017 में रनर-अप रही और 2022 में सीट जीत भी चुकी है। उन्होंने भाजपा से समर्थन की मांग की।
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, मुख्तार अंसारी की गैरमौजूदगी और अब्बास अंसारी की अयोग्यता से अंसारी परिवार का राजनीतिक प्रभाव कमजोर हुआ है। वर्तमान में मुख्तार के भाई अफजाल अंसारी गाज़ीपुर से सपा सांसद हैं, जबकि उनके बड़े भाई सिबगतुल्लाह का बेटा सुहैब अंसारी मोहम्मदाबाद से विधायक है। हालांकि, अफजाल पर भी कई आपराधिक मामले चल रहे हैं, जिससे परिवार का राजनीतिक भविष्य और अधिक संकट में है।
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भाजपा मऊ सीट पर अबतक जीत नहीं पाई

1980 के यूपी चुनाव से ही मुस्लिम समाज के उम्मीदवारों का वर्चस्व रहा है। 1980 में खैरुल बशर निर्दलीय जीते थे। 1985 में सीपीआई के इकबाल अहमद और 1989 में बसपा के मोबिन जीते थे। 1991 में बीजेपी ने इस सीट पर मुख्तार अब्बास नकवी को उम्मीदवार बनाया था, लेकिन सीपीआई के इम्तियाज अहमद ने उन्हें हरा दिया था। मुख्तार अब्बास नकवी 1993 में भी मऊ सीट से लड़े, लेकिन हार मिली। 1996 में मुख्तार अंसारी ने बसपा के टिकट पर पहली बार मऊ सीट से जीत हासिल की और इसके बाद से अब तक यह सीट अंसारी परिवार के ही पास रही है। बीजेपी को मऊ सदर सीट पर कभी जीत हासिल नहीं हुई।

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