scriptBanke Bihari Corridor : आस्था की गलियों में विकास की दस्तक, बांके बिहारी कॉरिडोर का सच | B Development knocks on the streets of faith, the truth of Banke Bihari Corridor | Patrika News
मथुरा

Banke Bihari Corridor : आस्था की गलियों में विकास की दस्तक, बांके बिहारी कॉरिडोर का सच

Banke Bihari Corridor : वृंदावन का बांके बिहारी मंदिर। जहां हर दिन नहीं, हर क्षण… करोड़ों दिलों की धड़कन बसती है। पर अब, इसी धड़कन के बीच एक नई खलबली है… विकास बनाम विरासत की।

मथुराJun 19, 2025 / 06:03 pm

ओम शर्मा

बांके बिहारी कारिडोर. PC – पत्रिका डिजाइनिंग टीम।

वृंदावन की तंग गलियों में गूंजते “राधे-राधे” के स्वर और लाखों श्रद्धालुओं की भावनाओं के बीच एक नई आवाज उठ रही है—कॉरिडोर बनाओ, भीड़ हटाओ। पर ये मांग जितनी सरल दिखती है, हकीकत में उतनी ही उलझी हुई है। सवाल है—क्या बांके बिहारी मंदिर का कॉरिडोर आस्था की रक्षा करेगा या उसकी आत्मा को चोट पहुंचाएगा?

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बांके बिहारी मंदिर कोई आम धार्मिक स्थल नहीं, ये एक जीवंत अनुभव है। यहां ठाकुर जी के दर्शन भी उनके सेवायतों की इच्छा और परंपराओं पर आधारित होते हैं। मंदिर के अंदर हर क्षण, हर आरती, हर श्रृंगार, अपने आप में एक रासलीला है।
भीड़ का आलम यह है कि हर दिन हजारों, त्योहारों पर लाखों श्रद्धालु इन तंग गलियों से होकर मंदिर पहुंचते हैं। इन्हीं गलियों को कुंज गलियां कहा जाता है, जिनमें वृंदा और वन की पवित्र कथा बसती है।

हादसे से शुरू हुआ बदलाव का प्रस्ताव

19 अगस्त 2022 को जन्माष्टमी के दिन मंगला आरती के दौरान भारी भीड़ के बीच दम घुटने से दो श्रद्धालुओं की मौत हो गई। इसी के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट में पत्रकार और स्थानीय निवासी अनंत शर्मा ने एक जनहित याचिका दायर की। याचिका में कहा गया कि श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर जरूरी है।
कोर्ट ने मामले को गंभीरता से लिया और उत्तर प्रदेश सरकार को बांके बिहारी मंदिर के लिए एक मास्टर प्लान तैयार करने को कहा। वहीं से “कॉरिडोर” शब्द पहली बार चर्चा में आया।

कॉरिडोर का प्रस्ताव क्या है?

  • मंदिर के चारों ओर 5-7 मीटर चौड़ा गलियारा
  • श्रद्धालुओं के लिए अलग एंट्री-एग्जिट
  • मेडिकल और सिक्योरिटी केंद्र
  • पार्किंग स्पेस
  • आसपास की 300 से अधिक दुकानों और घरों का अधिग्रहण

गोस्वामी परिवार और स्थानीय व्यापारियों का विरोध

बांके बिहारी मंदिर की सेवा पद्धति 500 साल पुरानी है। सेवायत गोस्वामी परिवारों का मानना है कि मंदिर उनकी वंशानुगत संपत्ति है और पूजा की जिम्मेदारी भी केवल उन्हीं की है।
  1. मंदिर की पारंपरिक पूजा व्यवस्था में हस्तक्षेप
  2. पुश्तैनी अधिकारों का हनन
  3. कुंज गलियों की ऐतिहासिक आत्मा का विनाश
स्थानीय दुकानदारों को डर है कि उनकी आजीविका पर संकट आएगा और उन्हें बिना मुआवजा या पुनर्वास के उजाड़ दिया जाएगा।

मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा

जब सरकार ने भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू की, तो सेवायत गोस्वामी परिवारों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। उनका दावा है कि मंदिर और आसपास की जमीन निजी है, और इस पर सरकार का अधिग्रहण अवैध है।
वहीं सरकार का पक्ष है कि धार्मिक स्थल सार्वजनिक हैं, और श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए संरचनात्मक विकास जरूरी है। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में मामला विचाराधीन है।

तो आखिर पेंच कहां अटका है?

  • सुप्रीम कोर्ट का अंतिम निर्णय लंबित है
  • स्थानीय लोगों और सेवायतों का सरकार पर भरोसा नहीं है
  • विस्तृत मास्टर प्लान सार्वजनिक नहीं हुआ है
सरकार की तरफ से संवाद की कमी है वृंदावन केवल एक स्थान नहीं, यह एक भाव है। और भावनाओं का समाधान सिर्फ कानून से नहीं, संवेदना से भी आता है। अंत में बस यही बांके बिहारी सबके हैं। उनका घर भी सबका है। तो उसका भविष्य भी सबके साथ मिलकर ही लिखा जाना चाहिए।

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