एसपी गोयल: सीएम के सबसे करीबी, लेकिन जातीय समीकरण बन सकते हैं बाधा आईएएस शशि प्रकाश गोयल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पिछले साढ़े आठ वर्षों से प्रमुख सचिव और अपर मुख्य सचिव के रूप में पंचम तल (मुख्यमंत्री कार्यालय) की जिम्मेदारी संभालते रहे हैं। उन्हें सीएम का सबसे भरोसेमंद अधिकारी माना जाता है। यूपी के हर जिले की गहरी जानकारी रखने वाले गोयल की ब्यूरोक्रेसी और राजनीतिक हलकों में मजबूत पकड़ है। उनके पास प्रशासनिक अनुभव और निर्णय क्षमता दोनों हैं।
लेकिन गोयल की राह आसान नहीं है। जातीय संतुलन का मुद्दा उनके खिलाफ खड़ा हो गया है। पुलिस महानिदेशक राजीव कृष्णा और गोयल दोनों वैश्य समाज से आते हैं। इससे कुछ लोग यह तर्क दे रहे हैं कि शासन और पुलिस के शीर्ष पदों पर एक ही जाति के अफसर नहीं होने चाहिए। इसके अलावा गोयल के खिलाफ एक प्रभावशाली लॉबी भी सक्रिय है जो दिल्ली तक जाकर उनके खिलाफ माहौल बना रही है।
देवेश चतुर्वेदी: ब्राह्मण कार्ड और केंद्र से वापसी की चुनौती
देवेश चतुर्वेदी वर्तमान में केंद्र सरकार में कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के सचिव हैं। वे भी सीएम योगी के भरोसेमंद अफसरों में गिने जाते हैं। योगी के सांसद कार्यकाल के दौरान वह गोरखपुर के डीएम भी रह चुके हैं। उनकी छवि एक सुलझे हुए अफसर की है। ब्राह्मण समुदाय को साधने की रणनीति के तहत चतुर्वेदी को मुख्य सचिव बनाने पर भी मंथन चल रहा है। लेकिन एक बड़ी अड़चन यह है कि उन्हें सीएस बनने के लिए केंद्र से रिलीव किया जाना होगा। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सहमति अनिवार्य है। यदि केंद्र सहमत हो गया, तो चतुर्वेदी फरवरी 2026 तक सीएस रह सकते हैं और फिर छह महीने का सेवा विस्तार मिल सकता है।
दीपक कुमार: योगी के भरोसेमंद, मजबूत प्रशासनिक पकड़
दीपक कुमार वर्तमान में कृषि उत्पादन आयुक्त के साथ-साथ वित्त, बेसिक शिक्षा, माध्यमिक शिक्षा जैसे बड़े विभाग संभाल रहे हैं। योगी के साथ गोरखपुर डीएम रहते हुए उनका रिश्ता बना और तब से वे मुख्यमंत्री के करीबी अफसर माने जाते हैं। दीपक कुमार की छवि निर्णय लेने वाले और तेज डिलिवरी वाले अफसर की है। वह सहज उपलब्ध रहते हैं और आम जनता व जनप्रतिनिधियों से संवाद भी बनाए रखते हैं। दीपक कुमार अक्टूबर 2026 में रिटायर होंगे और जरूरत पड़ी तो उन्हें भी छह महीने का सेवा विस्तार मिल सकता है। ठाकुर वर्ग से होने के कारण उनकी जातीय लॉबी भी सक्रिय हो चुकी है।
अनिल कुमार: वरिष्ठता तो है लेकिन …
अनिल कुमार भी देवेश चतुर्वेदी के बैच के आईएएस हैं और इस समय राजस्व परिषद के अध्यक्ष हैं। हालांकि योगी सरकार के दोनों कार्यकाल में उन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं मिली, जिससे यह संकेत मिलता है कि वे सीएम की पहली पसंद नहीं हैं।
जातीय संतुलन और राजनीतिक समीकरण
यूपी में प्रशासनिक नियुक्तियों में जातीय समीकरण का संतुलन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वैश्य, ब्राह्मण और ठाकुर लॉबी अपने-अपने समाज के अफसरों के पक्ष में माहौल बना रही है। इससे मुख्य सचिव की दौड़ और जटिल होती जा रही है। गोयल के विरोध में सक्रिय लॉबी उनके सीएस बनने की संभावनाओं को कमजोर करने में जुटी है।
एक्सटेंशन या नया चेहरा
पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन के अनुसार संभव है कि सीएम योगी मौजूदा सीएस मनोज कुमार सिंह का कार्यकाल बढ़वाने की सिफारिश करें। अगर ऐसा हुआ, तो अगले छह महीने तक इस पद पर कोई बदलाव नहीं होगा। हालांकि, अगर सरकार चुनावों को ध्यान में रखते हुए नया चेहरा लाना चाहती है, तो फिर एसपी गोयल का नाम सबसे आगे है।
मुख्य सचिव की भूमिका और चुनौती
मुख्य सचिव न केवल नौकरशाही का मुखिया होता है, बल्कि वह मुख्यमंत्री का सबसे करीबी सलाहकार भी होता है। उसके निर्णय पूरे राज्य की प्रशासनिक दिशा तय करते हैं। यदि सीनियर मोस्ट अधिकारी की जगह जूनियर को सीएस बनाया जाए, तो वरिष्ठ अफसरों में असहजता और असंतोष पैदा होता है। इसलिए वरिष्ठता, अनुभव और राजनीतिक विश्वास का सही संतुलन बनाना जरूरी है।
कृपालपुर गांव की पुकार: एक प्रतीकात्मक सवाल
फतेहपुर जिले का कृपालपुर गांव आज भी पुल की मांग कर रहा है। यह गांव, जहां 200 बच्चे रोज नाव से नदी पार कर स्कूल जाते हैं, यह सवाल करता है,अफसर कौन बने, इससे जनता को क्या? उन्हें तो केवल यह चाहिए कि निर्णय समय पर हों और जमीन पर दिखें। गांव के लोग कहते हैं,हमें कोई योजना नहीं चाहिए, बस पुल बनवा दीजिए। यह प्रशासनिक व्यवस्था की असल परीक्षा है।