मुख्यमंत्री ने निर्देश दिए कि प्राणघातक रोग से पीड़ित होने की आशंका वाले सिद्धदोष बंदी, जिसे मुक्त करने पर उसके स्वस्थ होने की उपयुक्त संभावना है तथा वृद्धावस्था, अशक्तता या बीमारी के कारण भविष्य में ऐसा अपराध करने में स्थायी रूप से असमर्थ बंदी, जिसके लिए वह दोषी ठहराया गया हो, के साथ-साथ घातक बीमारी या किसी प्रकार की अशक्तता से पीड़ित सिद्धदोष बंदी जिसकी मृत्यु निकट भविष्य में होने की संभावना हो, के संबंध में प्रदेश के सभी कारागारों में सर्वेक्षण कर वास्तविक संख्या का आकलन किया जाए। इनमें महिलाओं, बुजुर्गों को प्राथमिकता के आधार पर रिहा करने की व्यवस्था हो।
मुख्यमंत्री ने कैदियों को कृषि, गोसेवा आदि कार्यों से जोड़कर उनकी जेल अवधि के सदुपयोग करने के लिए व्यवस्था बनाने की भी आवश्यकता बताई। सीएम योगी ने कहा कि जेल मैनुअल में यह भी स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाना आवश्यक है कि किन बीमारियों को असाध्य रोग की श्रेणी में रखा जाएगा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि समाज की सुरक्षा सर्वोपरि है। इसलिए समयपूर्व रिहाई उन्हीं मामलों में की जानी चाहिए, जहां से सामाजिक जोखिम न हो। उन्होंने यह भी निर्देश दिए कि हत्या, आतंकवाद, देशद्रोह, महिला और बच्चों के विरुद्ध जघन्य अपराध जैसे मामलों में रिहाई कतई नहीं की जानी चाहिए।
नियमों में बदलाव पर जोर देते हुए सीएम योगी ने कहा कि प्रत्येक वर्ष तीन बार जनवरी, मई और सितंबर में पात्र बंदियों के मामलों की स्वतः समीक्षा की व्यवस्था हो। यदि किसी बंदी को रिहाई न दी जाए तो उसके कारण स्पष्ट रूप से दर्ज किए जाएं और उसे यह अधिकार मिले कि वह उस निर्णय को चुनौती दे सके।
बैठक में अधिकारियों ने जानकारी दी कि राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा सुझाई गई प्रणाली को उत्तर प्रदेश में अपनाने पर भी विचार किया जा रहा है, ताकि बंदियों को न्यायिक अधिकारों का लाभ सुचारू रूप से मिल सके।
मुख्यमंत्री ने कहा कि यह पूरी प्रक्रिया निष्पक्ष, त्वरित और मानवीय संवेदनाओं पर आधारित होनी चाहिए तथा जल्द ही नई नीति का प्रारूप तैयार कर अनुमोदन हेतु प्रस्तुत किया जाए।