हालांकि दोनों डिप्टी सीएम की ओर से इस मुलाकात को महज शिष्टाचार भेंट बताया गया है, लेकिन राजनीतिक विश्लेषक इसे भाजपा के जातीय समीकरणों में बढ़ते तनाव के संकेत के रूप में देख रहे हैं। प्रदेश की राजनीति में लंबे समय से वोटिंग पैटर्न जातीय आधार पर प्रभावित रहा है। ऐसे में हालिया घटनाक्रम को सत्ता और संगठन के भीतर नए शक्ति समीकरण बनने के संकेत माना जा रहा है।
कॉन्स्टिट्यूशन क्लब चुनाव और योगी की बढ़ती पकड़
दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया के सचिव पद के चुनाव में भाजपा के संजीव बालियान की हार ने दिल्ली तक योगी आदित्यनाथ के बढ़ते दबदबे की चर्चा तेज कर दी। इस चुनाव में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी मतदान किया था। बताया जाता है कि शाह के करीबी नेताओं ने भाजपा सांसद राजीव प्रताप रूडी का विरोध किया, जो पिछले 25 वर्षों से सचिव पद पर काबिज रहे थे। इस हार के बाद योगी विरोधी खेमे के कई नेता एकजुट होते दिख रहे हैं। पूर्व सांसद बृजभूषण शरण सिंह, उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक,तीनों को योगी के करीबियों में नहीं गिना जाता। माना जाता है कि बृजभूषण शरण सिंह को अमित शाह का संरक्षण प्राप्त है। यही वजह है कि यह खेमेबाजी अब खुलकर सामने आ रही है।
ठाकुर विधायकों की बैठक और भीतर खाने की राजनीति
हाल ही में हुई ठाकुर विधायकों की बैठक को सत्ता समर्थित बताने की कोशिश हुई, लेकिन बृजभूषण शरण सिंह ने इस बैठक की आलोचना कर इसकी हवा निकालने का प्रयास किया। सूत्रों के अनुसार, यह बैठक भले ही रामवीर सिंह और जयवीर सिंह ने बुलाई थी, लेकिन असल संचालन राजा भैया कर रहे थे। यही कारण है कि राजा भैया की योगी मंत्रिमंडल में संभावित एंट्री को लेकर अटकलें भी तेज हो गई हैं। बैठक में क्षत्रिय समाज की एकजुटता और भाजपा संगठन व सरकार में उनकी स्थिति मजबूत करने की रणनीति पर चर्चा हुई। भाजपा संगठन ने इस पूरे घटनाक्रम की रिपोर्ट केंद्रीय नेतृत्व को भेज दी है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव लंबे समय से योगी सरकार पर ठाकुरवाद का आरोप लगाते रहे हैं। सोमवार को इंडिया गठबंधन की प्रेस कांफ्रेंस में भी सपा महासचिव रामगोपाल यादव ने यही आरोप दोहराया।
योगी के विरोधी खेमे में बढ़ी सक्रियता
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिली चुनौती के पीछे पिछड़े वर्ग का वोट बैंक था, जो समाजवादी पार्टी की ओर खिसक गया। 2022 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा के कई पिछड़े वर्ग के नेता सपा में चले गए थे, लेकिन तब भाजपा को अपेक्षाकृत कम नुकसान हुआ। वहीं, लोकसभा चुनाव में यह नुकसान साफ नजर आया। अब गैर-ठाकुर भाजपा नेताओं की नजदीकियों और मुलाकातों को इसी राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में देखा जा रहा है। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक की मुलाकात की तस्वीरें सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुईं। केशव प्रसाद मौर्य ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा कि उन्होंने सात कालिदास मार्ग स्थित अपने आवास पर ब्रजेश पाठक से शिष्टाचार भेंट की और कुशलक्षेम ली। वहीं, ब्रजेश पाठक ने भी तस्वीरें साझा करते हुए लिखा कि उन्होंने केशव प्रसाद मौर्य से मुलाकात की और उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी पर आधारित पुस्तक भेंट की।
समीकरणों का बदलता गणित
इस पूरे घटनाक्रम के केंद्र में योगी आदित्यनाथ की राजनीतिक शैली और भाजपा के भीतर जातीय संतुलन की चुनौती है। ठाकुर विधायकों की बैठक से जहां भाजपा के क्षत्रिय नेताओं की ताकत का प्रदर्शन हुआ, वहीं गैर-ठाकुर नेताओं के बीच बढ़ते संवाद से यह संकेत मिल रहा है कि पार्टी के भीतर एक समानांतर शक्ति केंद्र उभर रहा है। पूर्व सांसद बृजभूषण शरण सिंह
मुख्यमंत्री योगी से मिलने के बावजूद अपने तेवर में नरमी नहीं ला रहे। योगी विरोधियों के इस सक्रिय समूह में केशव प्रसाद मौर्य, ब्रजेश पाठक और अन्य गैर-ठाकुर नेता शामिल बताए जा रहे हैं। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यह खेमेबाजी लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए नए सियासी संकट खड़े कर सकती है।