यूरिया की खपत में 65% की वृद्धि: सिर्फ रोपाई का आंकड़ा

कानपुर में धान की खेती का रकबा तो 29% ही बढ़ा, लेकिन यूरिया की खपत पिछले वर्ष की तुलना में 65% अधिक हो गई है। अप्रैल से जुलाई 2025 तक 17,178 मीट्रिक टन यूरिया की बिक्री दर्ज हुई, जबकि 2024 में यह आंकड़ा मात्र 10,403 मीट्रिक टन था। ध्यान देने योग्य बात यह है कि ये आंकड़े केवल धान की रोपाई के दौरान की हैं। निराई के समय एक और खपत चक्र बचा हुआ है, जिससे यूरिया का यह आंकड़ा और भी उछल सकता है। इस भारी खपत को देखते हुए शासन ने आशंका जताई है कि इसमें जमाखोरी और कालाबाजारी की संभावना हो सकती है। कृषि विभाग को इस पर जांच के आदेश दिए गए हैं।
धान के रकबे में वृद्धि या सरकारी सब्सिडी का दोहन?

वर्ष 2024 में 32,169 हेक्टेयर में धान की खेती हुई थी और 2025 में 45,297 हेक्टेयर में। यानी रकबा तो 29% बढ़ा, लेकिन यूरिया की खपत असमान्य रूप से ज्यादा है, जो यह संकेत देती है कि नीति के स्तर पर कहीं न कहीं मृदा स्वास्थ्य की अनदेखी हो रही है।
केंद्र का रुख: प्राकृतिक खेती और वैकल्पिक उर्वरकों की ओर

दूसरी ओर, केंद्र सरकार खेती के लिए संतुलित पोषक तत्व प्रबंधन की दिशा में तेज़ी से काम कर रही है। 2014 में शुरू हुई मृदा स्वास्थ्य एवं उर्वरता योजना के तहत किसानों को अब तक 25 करोड़ से अधिक मृदा स्वास्थ्य कार्डजारी किए गए हैं, जो मिट्टी की ज़रूरत के अनुसार उर्वरकों की मात्रा का मार्गदर्शन करते हैं।