यह समस्या केवल आंकड़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि कई परिवारों की असल जिंदगी इससे प्रभावित हो रही है। एक ऐसा ही मामला सामने आया है प्रयागराज जनपद के हंडिया तहसील स्थित गांव जमुना सोधा का, जहां रहने वाली वृद्ध सुम्मारी देवी अपने छोटे बेटे राहुल कुमार विंद को लेकर फायर सर्विस कार्यालयों के चक्कर काट रही हैं। वर्ष 2020 में उनके बड़े बेटे अजय कुमार विंद, जो कि उत्तर प्रदेश फायर सर्विस में फायरमैन के पद पर तैनात थे, ड्यूटी के दौरान अचानक निधन हो गया। नियमों के अनुसार, मृतक आश्रित कोटे में छोटे भाई राहुल कुमार विंद को नौकरी मिलनी चाहिए थी, लेकिन सेवा नियमावली के अभाव में आज तक उन्हें नौकरी नहीं मिल पाई है।
तीन वर्षों से बंद है नियुक्ति प्रक्रिया
राहुल कुमार का शारीरिक परीक्षण (फिजिकल टेस्ट) और दौड़ आदि की प्रक्रिया 2020 में ही पूरी हो चुकी थी। उन्होंने सभी मापदंडों को सफलता से पूरा किया, लेकिन इसके बावजूद उन्हें केवल यह कहकर टाल दिया जाता है कि जब तक शासन द्वारा सेवा नियमावली नहीं जारी होती, तब तक नियुक्ति संभव नहीं है। यही स्थिति प्रदेश के अन्य 13 मृतक आश्रितों की भी है।
परिवार की बढ़ती जिम्मेदारियां
अजय कुमार विंद अविवाहित थे और परिवार की आर्थिक और सामाजिक जिम्मेदारियां वहन करते थे। उनके निधन के बाद परिवार की सारी जिम्मेदारी अब छोटे भाई राहुल पर आ गई है। मां सुम्मारी देवी कहती हैं, “घर में दो अविवाहित बेटियां हैं। पेंशन से जैसे-तैसे घर चल रहा है। यदि बेटे को समय से नौकरी मिल जाए तो वह अपनी बहनों की जिम्मेदारी उठाकर घर की आर्थिक स्थिति संभाल सकता है।” परिवार की कहानी हृदयविदारक है। अजय के निधन के बाद उनका परिवार एक गहरे संकट में डूब गया है। मां वृद्ध हैं, बेटियां विवाह योग्य हैं और पूरा घर एक अधर में लटका हुआ प्रतीत होता है। नौकरी की आस में राहुल न जाने कितने दफ्तरों के चक्कर काट चुका है, लेकिन हर बार उसे यही कहा जाता है, “सेवा नियमावली न आने तक नियुक्ति संभव नहीं।”
नियमावली की प्रतीक्षा में नियुक्ति और पदोन्नति रुकी
वर्ष 2022 में शासन ने फायर सर्विस विभाग में नई सेवा नियमावली लागू करने की घोषणा की थी। यह नियमावली पुराने 1981 के सेवा नियमों को निरस्त कर बनानी थी, लेकिन दो साल बीतने के बाद भी यह कार्य अधूरा है। इसका असर न केवल मृतक आश्रित कोटे की नियुक्तियों पर पड़ा है, बल्कि विभागीय पदोन्नतियां और नियमित भर्तियां भी रुकी पड़ी हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह शासन की गंभीर लापरवाही है। जिस विभाग में हर समय आपदा प्रबंधन की स्थिति बनी रहती है, वहां स्टाफ की कमी और नियुक्तियों में देरी गंभीर प्रशासनिक चूक है।
प्रदेश में बढ़ रही मृतक आश्रितों की संख्या
राहुल कुमार की ही तरह कई अन्य युवक अजय, अनिकेत, सुनील, ऋषभ, विनीत त्रिपाठी, आस्य सहित कुल 14 मृतक आश्रित नियुक्ति के लिए कतार में हैं। सभी ने विभागीय स्तर पर आवेदन किया है और कईयों की प्रक्रिया भी पूरी हो चुकी है। इसके बावजूद एक अदद नियमावली के कारण उनकी जिंदगी ठहर गई है।
अवसाद और सामाजिक समस्याएं बढ़ रहीं
इन आश्रित परिवारों में आर्थिक तंगी के साथ-साथ सामाजिक समस्याएं भी जन्म ले रही हैं। विवाह योग्य बेटियां घरों में बैठी हैं, बेरोजगार बेटे मानसिक दबाव में हैं और माता-पिता शासन की बेरुखी से टूट चुके हैं। सुम्मारी देवी का कहना है, “हर बार शासन से जवाब मिलता है कि प्रक्रिया जारी है। लेकिन कब तक? तीन साल से हम लोग ठगा-सा महसूस कर रहे हैं। बेटे की नौकरी मिलने से कम से कम घर में रोटी-पानी का इंतजाम ठीक हो जाएगा।”
शासन की चुप्पी बनी बाधा
प्रदेश सरकार की ओर से अब तक इस मुद्दे पर कोई ठोस पहल नहीं की गई है। न तो नई सेवा नियमावली को अंतिम रूप दिया गया है और न ही इन मृतक आश्रितों की समस्याओं को प्राथमिकता दी गई है। संबंधित विभाग भी केवल शासनादेश का हवाला देकर जिम्मेदारी से बचता नजर आ रहा है।
मांग: शीघ्र हो सेवा नियमावली की घोषणा
मृतक आश्रितों और उनके परिवारों की मांग है कि शासन जल्द से जल्द फायर सर्विस के लिए सेवा नियमावली जारी करें, ताकि लटकते हुए मामले निपटाए जा सकें। इसके साथ ही नियुक्तियों की प्रक्रिया को पारदर्शी और त्वरित रूप से लागू किया जाए, जिससे योग्य युवाओं को रोजगार मिल सके और परिवारों को राहत पहुंचे।