scriptExcise Department UP: शराब उद्योग बना यूपी की अर्थव्यवस्था का मजबूत स्तंभ, 56 हजार करोड़ की आमदनी और 5 लाख को रोजगार | UP Alcohol Industry Boosts Economy with ₹56,000 Cr Contribution and 5.3 Lakh Jobs | Patrika News
लखनऊ

Excise Department UP: शराब उद्योग बना यूपी की अर्थव्यवस्था का मजबूत स्तंभ, 56 हजार करोड़ की आमदनी और 5 लाख को रोजगार

UP Alcohol Industry :  उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था में एल्कोहलिक बेवरेज उद्योग का योगदान तेजी से बढ़ रहा है। इंटरनेशनल स्पिरिट्स एंड वाइन्स एसोसिएशन की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य को इससे 56,000 करोड़ रुपये की आय और 5.3 लाख लोगों को रोजगार मिला है। उद्योग नीति, पारदर्शिता और निवेशकों की रुचि से यह क्षेत्र फल-फूल रहा है।

लखनऊJul 10, 2025 / 10:46 am

Ritesh Singh

56 हजार करोड़ की हिस्सेदारी, 5.3 लाख को मिला रोजगार फोटो सोर्स :Social Media

56 हजार करोड़ की हिस्सेदारी, 5.3 लाख को मिला रोजगार फोटो सोर्स :Social Media

Excise Department UP ISWAI Report: उत्तर प्रदेश में एल्कोहलिक बेवरेज (एल्कोबेव) उद्योग अब न केवल सामाजिक दृष्टिकोण से बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी एक मजबूत स्तंभ बन चुका है। हाल ही में इंटरनेशनल स्पिरिट्स एंड वाइन्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (ISWAI) द्वारा जारी रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि राज्य की अर्थव्यवस्था में इस उद्योग का योगदान ₹56,000 करोड़ तक पहुंच चुका है, जो प्रदेश की सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का लगभग 2.4% है। इतना ही नहीं, इससे जुड़े उद्योगों ने 5.3 लाख लोगों को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार भी मुहैया कराया है।

नीति निर्धारण में मददगार साबित होगी रिपोर्ट

इस रिपोर्ट के सार्वजनिक होने के बाद प्रदेश के आबकारी मंत्री नितिन अग्रवाल ने स्पष्ट किया कि यह रिपोर्ट राज्य सरकार को यूपी को $1 ट्रिलियन (दस खरब डॉलर) की अर्थव्यवस्था बनाने की दिशा में नीति निर्धारण हेतु मदद करेगी। उन्होंने यह भी कहा कि पारदर्शिता, निवेशक अनुकूल वातावरण, और एकाधिकार समाप्ति जैसे कदमों से प्रदेश में अल्कोहल सेक्टर को मजबूती मिली है। आबकारी आयुक्त डॉ. आदर्श सिंह ने बताया कि हालिया वर्षों में यूपी ने नीतिगत स्तर पर व्यापक बदलाव किए हैं, जिससे न सिर्फ निवेशकों का विश्वास बढ़ा है, बल्कि उद्योग की संरचना में भी सुधार हुआ है।

शराब से ज्यादा, अब स्वास्थ्य का भी ध्यान

एल्कोहल के प्रति जनता का नजरिया भी बदल रहा है। अब उपभोक्ता केवल नशे की दृष्टि से शराब नहीं ले रहे, बल्कि स्वाद, स्वास्थ्य और गुणवत्ता को भी प्राथमिकता दी जा रही है। ISWAI के अनुसार भारत में शराब की कुल खपत में 52% हिस्सा हार्ड लिकर का है, जबकि 48% हिस्सेदारी बीयर की है। वहीं, वाइन इंडस्ट्री मात्र 0.4% की खपत के बावजूद 3-4% की दर से तेज़ी से बढ़ रही है।

वाइन इंडस्ट्री के लिए मांग: बेहतर नीति, कम टैक्स

रिपोर्ट जारी होने के बाद हुए सम्मेलन में देश के कई उद्यमियों ने वाइन इंडस्ट्री को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर बल दिया। उद्यमी अश्विन रोड्रिग्स ने कहा कि उत्तर प्रदेश में केला, अमरूद और आम जैसे फल भरपूर मात्रा में होते हैं, जिनसे स्थानीय स्तर पर वाइन बनाई जा सकती है। उन्होंने सुझाव दिया कि महाराष्ट्र और कर्नाटक की तर्ज़ पर यूपी में भी माइक्रोवेवरी, जीरो एल्कोहल बीयर, और डोर स्टेप डिलीवरी जैसी सुविधाएं शुरू की जानी चाहिए। वहीं ग्लोबस स्पिरिट लिमिटेड के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर अमिताभ सिंह ने बताया कि एल्कोहल की शुद्धता में सुधार हुआ है, जिससे स्वास्थ्य पर इसके दुष्प्रभाव में कमी आई है।

देशी शराब को मिले समान स्थान

ISWAI के क्षेत्रीय निदेशक परविंदर सिंह ने सरकार से मांग की कि देशी शराब को भी बियर और अंग्रेजी शराब की कंपोजिट दुकानों में स्थान दिया जाए। इससे नकली और मिलावटी शराब पर रोक लगेगी और राजस्व में कम से कम 15% की वृद्धि हो सकती है। उत्तर प्रदेश में देशी शराब की वार्षिक वृद्धि दर 12% है, जबकि विदेशी शराब की 6%। इससे स्पष्ट है कि देशी शराब के क्षेत्र में संभावनाएं बहुत अधिक हैं, बशर्ते नीति और प्रशासन का सहयोग मिले।
वाइन इंडस्ट्री के विशेषज्ञ सुरेश मेनन ने सुझाव दिया कि राज्य सरकार को स्पष्ट और दीर्घकालिक नीति बनानी चाहिए। उन्होंने कर्नाटक मॉडल का उदाहरण देते हुए कहा कि एक बार लाइसेंस मिलने पर पूरे साल उसके नवीनीकरण की व्यवस्था होनी चाहिए। माल ब्लॉक के उद्यमी माधवेंद्र देव सिंह ने बताया कि उन्होंने एक नई वाइन यूनिट शुरू की है, जहां आम, शहतूत, नींबू, पुदीना और शहद से वाइन तैयार की जा रही है। इसका बाजार में लॉन्च अगले एक माह में होने की संभावना है। अगर उत्तर प्रदेश सरकार उपयुक्त नीतिगत और प्रशासनिक सहयोग प्रदान करती है, तो एल्कोहलिक बेवरेज उद्योग न केवल आर्थिक दृष्टि से बल्कि रोजगार, कृषि व पर्यटन के क्षेत्र में भी क्रांति ला सकता है। इससे जहां राज्य के राजस्व में जबरदस्त वृद्धि होगी, वहीं ‘मेक इन यूपी’ की दिशा में भी यह कदम एक महत्वपूर्ण योगदान साबित हो सकता है।

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