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राज्य के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री असीम अरुण, जो पहले एक तेजतर्रार आईपीएस अधिकारी रह चुके हैं, अब राजनीति की वर्दी खादी में जरूर हैं, लेकिन नियमों के प्रति उनका समर्पण आज भी पूर्ववत बना हुआ है। यह घटना न केवल प्रशासनिक संवेदनशीलता की मिसाल बन गई है, बल्कि एक राजनेता द्वारा नियमों के पालन के प्रति प्रतिबद्धता का उदाहरण भी प्रस्तुत करती है।जुलाई से महंगी होगी बिजली, उपभोक्ताओं को देना होगा 1.97% अतिरिक्त शुल्क
घटना

वाराणसी दौरे के दौरान असीम अरुण के लिए प्रशासन द्वारा जो सरकारी गाड़ी भेजी गई थी, उसमें अनधिकृत रूप से नीली बत्ती लगी थी। जैसे ही मंत्री जी ने यह देखा, उन्होंने उस गाड़ी में बैठने से साफ़ इनकार कर दिया और वैकल्पिक व्यवस्था की मांग की। उन्होंने न सिर्फ गाड़ी का प्रयोग करने से मना किया, बल्कि वाराणसी के पुलिस आयुक्त (Commissioner of Police) को इस संबंध में एक औपचारिक पत्र भी लिखा, जो अब सोशल मीडिया पर तेज़ी से वायरल हो रहा है।
इस पत्र में उन्होंने संबंधित वाहन के खिलाफ चालान करने और भविष्य में ऐसी अनाधिकृत गाड़ियों को प्रोटोकॉल में शामिल न करने के निर्देश दिए हैं।
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पत्र की भाषा और तेवर: “नियम सबके लिए बराबर
मंत्री असीम अरुण द्वारा लिखा गया पत्र संक्षिप्त होते हुए भी बेहद प्रभावशाली और स्पष्ट संदेश देने वाला है। इसमें उन्होंने उल्लेख किया कि “एक पूर्व आईपीएस अधिकारी के रूप में मैं जानता हूं कि किन वाहनों को किस श्रेणी की बत्ती प्रयोग करने की अनुमति होती है। जब नियम स्पष्ट हैं, तो उनके उल्लंघन को कोई कारण नहीं बन सकता चाहे वह सुविधा हो या प्रोटोकॉल।” उन्होंने आगे लिखा कि गाड़ी में लगी नीली बत्ती न केवल नियमों के खिलाफ है, बल्कि यह जनमानस में गलत संदेश भी देती है कि नियमों की अनदेखी प्रभावशाली पदों पर बैठे लोग ही कर रहे हैं।क्यों है नीली बत्ती का प्रयोग संदेहास्पद
भारत सरकार ने 2017 में एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए वीआईपी संस्कृति पर चोट की थी और सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने नियम बनाए थे कि केवल अत्यावश्यक सेवाओं या विशिष्ट श्रेणियों के अधिकारी ही विशेष बत्तियों (लाल/नीली) का प्रयोग कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी स्पष्ट किया है कि बत्ती का प्रयोग केवल आपातकालीन सेवाओं जैसे – एम्बुलेंस, फायर ब्रिगेड, पुलिस कंट्रोल रूम या वीवीआईपी सुरक्षा में लगे वाहनों तक सीमित है। सामान्यतः किसी भी मंत्री को निजी या आधिकारिक दौरे के लिए नीली बत्ती लगे वाहन का प्रयोग नहीं करना चाहिए, जब तक वह सुरक्षा श्रेणी में न आता हो।लखनऊ में 82 प्राथमिक स्कूलों का हुआ विलय, पहली जुलाई से नए स्कूल में पढ़ाई शुरू
असीम अरुण: अनुशासन की मिसाल
असीम अरुण उत्तर प्रदेश कैडर के 1994 बैच के आईपीएस अधिकारी रह चुके हैं। वह ATS के पहले प्रमुख रहे, कानपुर के पुलिस कमिश्नर, गोरखपुर और आगरा जैसे शहरों के SSP तथा मुख्यमंत्री सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण दायित्वों को भी निभा चुके हैं। उनका प्रशासनिक कार्यकाल हमेशा कठोर अनुशासन, पारदर्शिता और उच्च नैतिक मूल्यों के लिए जाना गया। उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के टिकट से कन्नौज सीट जीतकर हुई। मंत्री बनने के बाद भी उनका स्वभाव और नियमों के प्रति ईमानदारी में कोई बदलाव नहीं आया है और यह घटना उसी का उदाहरण है।अब लखनऊ बनेगा नया NCR: 6 जिलों की सूरत संवारेगा SCR
प्रशासनिक हलकों में सराहना
