कायलाना रोड पर मौजूद वन्यजीव चिकित्सालय व पुनर्वास केन्द्र में मौजूद पक्षी तिलोर। फोटो- पत्रिका
सात साल पहले शीतकालीन प्रवास के दौरान भारतीय सीमा में पहुंचे दुर्लभ तिलोर पक्षी लंबे अर्से से सीमा लांघने की सजा भुगत रहे हैं। जोधपुर के कायलाना रोड पर मौजूद वन्यजीव चिकित्सालय और पुनर्वास केंद्र में कैद प्रवासी पक्षियों को ‘सुरक्षा’ के साथ उनकी प्राकृतिक उड़ान क्षमता में कमी के नाम पर पिंजरे में रखा गया है।
जानकारी के अनुसार वर्ष 2018 से 2023 के बीच जैसलमेर, बाड़मेर और बीकानेर क्षेत्र से घायल मिले 7 तिलोर पक्षियों का रेस्क्यू कर जोधपुर के माचिया वन्यजीव बचाव केंद्र में रखा गया। इनमें से पांच पक्षियों के पैरों में वैज्ञानिक टैग लगे हुए थे, जिनका उद्देश्य उनके प्रवास और गतिविधियों पर अध्ययन करना था। दुर्भाग्यवश इनमें से चार तिलोर पक्षियों की मौत हो चुकी है। पैरों में लगे टैग के अनुसार पांच पक्षी संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के अबूधाबी से उड़कर भारत पहुंचे थे। इन पक्षियों को आजादी का इंतजार है।
शीतकाल प्रवास पर आते हैं पक्षी
भारत में शीतकालीन प्रवासी के रूप में आने वाला तिलोर (होबारा बस्टर्ड) अक्टूबर से फरवरी के बीच अफगानिस्तान, पाकिस्तान, ईरान, इराक, कजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान जैसे देशों से राजस्थान के थार क्षेत्र में प्रवास करता है। राज्य पक्षी गोडावण जैसे दिखने वाले इस पक्षी को ‘सोन चिरैया’ भी कहा जाता है।
नहीं ली सीजेडए से अनुमति
किसी पक्षी को लंबे समय तक चिड़ियाघर या जैविक उद्यान में रखा जाना हो तो इसके लिए केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण (सीजेडए) से पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य होता है, लेकिन अब तक सीजेडए से ऐसी कोई अनुमति नहीं ली गई है।
यह वीडियो भी देखें सभी पक्षी स्वस्थ हैं, लेकिन इनके पैरों में टैग लगे होने और चिकित्सकीय सलाह के अनुसार उड़ने की प्राकृतिक क्षमता में कमी के कारण इन्हें प्राकृतवास में स्वतंत्र नहीं किया जा रहा है।
रमेश कुमार, उपवन संरक्षक (वन्यजीव) जोधपुर
पर्यावरण प्रेमियों सहित हमारी ओर से रेस्क्यू सेंटर के पिंजरों में कैद तिलोर को मुक्त करने के लिए कई बार वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों से पत्राचार किए गए, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। नियमानुसार स्वस्थ हो चुके पक्षियों को पुन: उनके प्राकृतवास में छोड़ देना चाहिए।