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झुंझुनू

कैसे होती है ‘मालाबार नीम’ की खेती ? झुंझुनूं में रिटायर्ड फौजी ने तैयार किए 800 पौधे, लाखों में है कमाई

Malabar Neem cultivation: राजस्थान की धरती में अब दक्षिण भारतीय पौध ‘मालाबार नीम’ की खेती भी बड़े पैमाने पर शुरू हो गई है। एक रिटायर्ड फौजी ने झुंझुनूं जिले में एक साथ 800 पेड़ तैयार कर लिए हैं। इसकी कीमत लाखों में है।

झुंझुनूJul 29, 2025 / 09:01 pm

Kamal Mishra

Cultivation of Malabar Neem

मालाबार नीम की खेती (फोटो-पत्रिका)

Malabar Neem cultivation: झुंझुनूं। करगिल की लड़ाई में फौजियों को भोजन व आयुध सामग्री पहुंचाने वाले रिटायर्ड सूबेदार राकेश कुमार शर्मा का जुनून अब माटी के धोरों में दिखाई दे रहा है। वह खुद के गांव नूआं के खेतों में मालाबार नीम की खेती कर रहे हैं। रिटायर्ड सूबेदार ने वर्ष 2019 में हैदराबाद व अन्य जगह से नीम के 900 पौधे लगाकर खेती शुरू की। अब यहां करीब 800 पौधे बड़े पेड़ बन चुके हैं।
मालाबार नीम की खेती में लागत न के बराबर है, जबकि मुनाफा अच्छा है। यह एक ऐसा पौधा है, जिसे अधिक पानी और खाद की जरूरत नहीं होती। साथ ही इसमें कोई रोग नहीं लगता। कम जमीन में ज्यादा पौधे लगाए जा सकते हैं। मालाबार नीम का विकास काफी तेजी से होता है। 2-3 साल में ही मालाबार नीम के पौधे 20-25 फीट के हो जाते हैं। ऐसे में किसान इसकी खेती करके बड़ा मुनाफा कमा सकते हैं।
Malabar Neem cultivation

इन इलाकों में सबसे अधिक होती है मालाबार की खेती

नूआं में मालाबार नीमों की ऊंचाई बढ़कर 50 से 55 फीट तक हो गई है। भारत में मालाबार नीम की खेती तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और केरल राज्यों में ज्यादा होती है। राजस्थान में काजरी ने भी कुछ साल पहले मालाबार नीम के पौधे उगाए थे, लेकिन उनकी ऊंचाई अभी नूआं वाले पेड़ों से कम है।

पेड़ों के नीचे मूंग व चना की फसल

रिटायर्ड फौजी राकेश ने बताया कि मालाबार नीम के पौधे यूकेलिप्टस की तरह तेजी से बढ़ते हैं और काफी ऊंचे होते हैं। इनके नीचे इतनी जगह होती है कि कम ऊंचाई वाली फसल चना, मूंग, मोठ, ग्वार, सरसों आदि की आसानी से खेती कर लेते हैं। इसका फायदा यह होता है कि छोटे-छोटे खर्च निकलते रहते हैं।

हैदराबादी नींबू से 2-3 लाख की कमाई

इसके अलावा फौजी राकेश हैदराबादी नींबू से हर साल दो से तीन लाख रुपए की कमाई कर लेते हैं। इनके खेत में अमरूद, शहतूत, इमली, अंजीर व आंवला के पेड़ भी लहलहा रहे हैं। वहीं सबसे अधिक मालाबार नीम और नींबू के पौधे हैं।

यह काम आता है मालाबार नीम

मालाबार नीम का उपयोग पेपर उद्योग, हार्ड बोर्ड व पैकेजिंग उद्योग में ज्यादा होता है। यह एक इमारती लकड़ी भी है। इसकी लकड़ी से बने फर्नीचर में दीमक नहीं लगते हैं। सबसे अधिक इसका उपयोग प्लाईवुड बनाने और माचिस की तीली आदि बनाने में किया जाता है। दक्षिण भारत में मालाबार नीम का प्रयोग ज्यादातर बांस की जगह किया जाता है, क्योंकि इसके पौधे पतले और काफी सीधे लंबे होते हैं।
Malabar Neem cultivation

मालाबार नीम की खेती से कमाई

मालाबार नीम के पौधे करीब से सात से आठ साल बाद पांच से छह क्विंटल लकड़ी दे सकता है। मालाबार नीम की एक क्विंटल लकड़ी की कीमत करीब 800 से 1000 रुपए प्रति क्विंटल तक है। हालांकि मांग व आपूर्ति के अनुसार भाव कम ज्यादा होते रहते हैं। फिर भी औसत एक पेड़ चार से छह हजार रुपए का बिक जाता है। राकेश ने अब निमोळी से मालाबार नीम की नर्सरी भी तैयार कर ली है, इसके पौधे बेचकर भी कमाई कर रहे हैं।
Malabar Neem cultivation

माटी से जुड़े रहने की चाहत

फौजी ने बताया कि उसके पिता जेपी शर्मा भी फौज से कैप्टन पद से रिटायर्ड हो चुके हैं, गांव से हमेशा लगाव रहा है। रिटायर्ड होने के बाद हालांकि जयपुर में रहने लग गए। लेकिन एक दिन उनके उद्यान वैज्ञानिक मित्र ने नूआं में बगीचा तैयार करने की सलाह दी। इसके बाद मिट्टी व पानी का परीक्षण करवाने के बाद पौधे लगा दिए। पत्नी सविता और बेटा विकास भी इसमें सहयोग करते हैं। उन्होंने बताया कि बच्चों का लगाव अपनी माटी से होता रहे, इसलिए वापस खेती का रुख किया।

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