तस्वीर कर रहे बदरंग
जैसलमेर जैसे खूबसूरत शहर को निहारने देश-दुनिया के सैलानी आते हैं। एक तरफ प्रशासन व नगरपरिषद की ओर से सौन्दर्यकरण के कई कार्य करवाए जा रहे हैं तो दूसरी ओर सफाई व्यवस्था को दुरुस्त बनाए रखने के दृष्टिकोण से स्थिति निराशाजनक ही है। नाले व नालियों का कूड़ा करकट बाहर निकाल कर वहीं छोड़ दिए जाने से संबंधित पूरे क्षेत्र में वातावरण दुर्गंध से भर जाता है। इसके अलावा सूखने पर पॉलीथिन, बोतलें व मिट्टी चारों तरफ फैल रही है।
इच्छाशक्ति की कमी
नगरपरिषद के पास जैसलमेर जैसे महज 5 किलोमीटर के दायरे में फैले शहर की सफाई व्यवस्था के लिहाज से करोड़ों रुपए की मशीनरी है। सैकड़ों की तादाद में स्थाई व ठेके पर लगे कार्मिकों की फौज है। इसके बावजूद जगह-जगह कचरा व गंदगी नजर आ जाती है। दरअसल, जिम्मेदारों में इच्छाशक्ति और उच्चाधिकारियों की तरफ से मोनेटरिंग की कमी के चलते यह समस्या विकराल होती चली गई है। कुछ प्रमुख सडक़ों पर दिन में दो बार बुहारी फेर दी जाती है लेकिन अंदरूनी हिस्सों से लेकर शहर की आवासीय कॉलोनियों व कच्ची बस्तियों आदि में सफाई व्यवस्था की तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता। इन क्षेत्रों से आए दिन नियमित तौर पर सफाईकर्मियों के नहीं आने की शिकायतें मिलती हैं।
बेअसर साबित हो रही हमारी आवाज
नालों की अव्वल तो सफाई नहीं होती और लम्बे अंतराल के बाद जब कभी यहां से कचरा व अन्य कूड़ा निकाला जाता है तो उसे हाथोहाथ हटाने की बजाए बाहर ही छोड़ दिया जाता है। कई बार इस संबंध में जिम्मेदारों को अवगत करवाए जाने के बावजूद समस्या का समाधान नहीं हो रहा। बड़े नालों की भांति गलियों में बनी नालियों की सफाई भी समयबद्ध ढंग से नहीं की जाती। कभी कभार उनकी सफाई करने के बाद गंदगी वहीं छोड़ दी जाती है। जब तक उसे हटाया जाता है, वह काफी कुछ इधर-उधर बिखर जाती है।
- मोहम्मद सलीम, स्थानीय निवासी