छह माह तक होता है प्रवास
मध्य एशिया के मंगोलिया, चीन, कजाकिस्तान से प्रवासी पक्षी कुरजां शीत ऋतु की शुरुआत में भारत में प्रवास करती है। विशेष रूप से पश्चिमी राजस्थान में सर्द मौसम में कुरजां का प्रवास होता है। सितंबर माह के पहले व दूसरे सप्ताह में कुरजां की आवक शुरू हो जाती है। सितंबर व अक्टूबर माह में जैसलमेर के चांधन, कोजेरी नाडी, डेलासर, देगराय ओरण सहित आसपास के तालाबों और पोकरण क्षेत्र के भणियाणा, खेतोलाई, धोलिया, भादरिया, रामदेवरा आदि गांवों के पास स्थित तालाबों व गुड्डी गांव में स्थित रिण में चार से पांच हजार कुरजां प्रवास करती है। ये कुरजां छह माह तक फरवरी माह के बाद मार्च में गर्मी की शुरुआत के साथ वापिस अपने स्वदेश के लिए प्रस्थान करती है।
खींचन में पर्याप्त व्यवस्थाएं, यहां अब तक इंतजार
प्रदेश में सर्वाधिक कुरजां पोकरण से केवल 65 किलोमीटर दूर फलोदी जिले के खींचन गांव में स्थित तालाब पर पड़ाव डालती है। खींचन तालाब पर प्रतिवर्ष 10 से 15 हजार कुरजां प्रवास करती है। खींचन में कुरजाओं के लिए भोजन, पानी के साथ उपचार, उनकी देखरेख, पर्यटकों के लिए बैठने व पक्षियों को देखने के साथ कई सुविधाएं विकसित की गई है। इसके साथ ही खींचन क्षेत्र में निकलने वाली विद्युत तारों को भी भूमिगत किया गया है, ताकि हादसों को रोका जा सका। दूसरी तरफ जैसलमेर व पोकरण क्षेत्र में सुविधाओं के नाम पर कोई व्यवस्था नहीं की गई है। फैक्ट फाइल
- 4 हजार से अधिक कुरजां करती है जैसलमेर जिले में प्रवास
- 3 गुणा बढ़ सकेगी संख्या जब होगा सुविधाओं का विस्तार
- 6 माह तक रहता है जलस्त्रोतों के समीप पड़ाव
सुविधाओं की दरकार
- खींचन में कुरजां के लिए पड़ाव स्थल के पास चुग्गाघर का निर्माण करवाया गया है। यहां प्रतिदिन एक से डेढ़ क्विंटल चुग्गा डाला जाता है।
- खींचन की तरह ही कुरजां के पड़ाव स्थल तालाबों के पास चुग्गाघर का निर्माण किया जाए।
- तालाबों में पानी को स्वच्छ रखें, ताकि दाने के साथ शुद्ध व स्वच्छ पानी मिल सके।
- जैसमलेर जिले में ओरण, गोचर व तालाबों के ऊपर से निकली हाइटेंशन विद्युत तारों को भूमिगत किया जाए, ताकि हादसों पर अंकुश लगाया जा सके।
- कई बार श्वानों के हमले में कुरजां घायल व काल का ग्रास हो जाती है। इसके लिए खींचन की तर्ज पर तालाबों के आसपास जाली जैसी तारबंदी की जाए।
- खींचन में जिस तरह कुरजां के उपचार की व्यवस्था है, उसी तरह जैसलमेर व पोकरण क्षेत्र में भी बीमार या घायल हो जाने पर उपचार की व्यवस्था की जाए।
- खींचन की तर्ज पर जैसलमेर जिले में तालाबों पर सरकार व वन विभाग की ओर से व्यवस्थाएं की जाती है तो कुरजां की संख्या तीन गुणा तक बढ़ सकेगी।