हर किसी के पास काम ही काम
शादी समारोहों की धूम होने से हलवाई, टेंट और डीजे के साथ शीतल पानी की सप्लाई करने वाले आरओ संचालकों आदि सभी के पास काम की इफरात है। हलवाइयों के पास तो इतना काम है कि वे सब जगहों पर पहुंच नहीं पा रहे हैं और संबंधित लोगों को बाहर से हलवाई बुलाने पड़ रहे हैं। यही स्थितियां शादी समारोहों के लिए भवनों की है। उनकी भी शहर से लेकर गांवों तक में कमी देखने को मिल रही है।
गांवों में मांगलिक गीतों की गूंज
फसलों की कटाई के बाद गर्मियों में आए इस सावे के चलते घर-घर मांगलिक गीतों की गूंज है। अब गांवों में भी शहरों की देखादेखी शादियां खर्चीली होने लगी हैं। वहां भी बड़े-बड़े शामियाने और लाइटिंग आदि से सजावट का जोर रहता है। बड़े-बड़े भोज के लिए व्यवस्थाएं भी बड़े स्तर पर करनी होती हैं। लकदक परिधानों के साथ सोने-चांदी के आभूषणों की भी भारी रंगत रहती है। शादियों के इस सीजन से स्वर्णनगरी सहित जिले के बड़े कस्बों के बाजारों में भी तेजी का रुख है। ज्वैलर्स, कपड़ा, खाद्य सामग्री विक्रेताओं से लेकर डीजे, टेंट, हलवाई, कैटरिंग का कार्य करने वालों से लेकर सामान्य मजदूरों के पास काम की कमी नहीं है। इसके अलावा जोधपुर, बाड़मेर, सूरत, अहमदाबाद, जयपुर आदि के बाजारों तक से खरीदारी की जा रही है।
हाथ में नगदी आने से उत्साह
ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश जगहों पर फसलों की कटाई और बेचान किया जा चुका है। ऐसे में किसानों के हाथ में नगद राशि आ गई है। कृषि और पशुपालन पर आधारित अर्थव्यवस्था वाले ग्रामीण जैसलमेर में शादियों की धूमधाम इस पर बहुत निर्भर करती है। अबूझ सावे पर ग्रामीण दिल खोल कर खर्च करने में कमी नहीं रखने वाले हैं। हलवाई नरपतसिंह और बंशीलाल के साथ प्रिंटर हरिराम प्रजापत के अनुसार सावे का काम बहुत ज्यादा है। हर किसी को सेवाएं प्रदान करने में दिक्कतें आ रही हैं। बाहरी जिलों से खाना बनाने का काम करने वाले सहयोगी जुटाने पड़ रहे हैं। अब गांवों में शहरों के समान ही बड़ी शादियां करने का चलन जोरों पर है। कहीं-कहीं तो शहर से ज्यादा धूमधाम व तामझाम गांवों में देखने को मिलती है। घरों व सामुदायिक भवनों को रोशनियों से सजाया-संवारा जा रहा है। बारात ले जाने के लिए बड़े पैमाने पर वाहनों की जरूरत भी रहती है।