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जैसलमेर

करोड़ों के नुकसान के बाद भी धार्मिक नगरी मेंं दमकल नहीं

रामदेवरा क्षेत्र के रामदेवरा गांव में दमकल की कमी आज भी खल रही है। धार्मिक स्थल होने, गांव की आबादी करीब 11 हजार होने तथा यहां प्रतिदिन हजारों श्रद्धालुओं के आवागमन के बावजूद दमकल की व्यवस्था आज तक नहीं की गई है।

जैसलमेरMay 14, 2025 / 08:50 pm

Deepak Vyas

रामदेवरा क्षेत्र के रामदेवरा गांव में दमकल की कमी आज भी खल रही है। धार्मिक स्थल होने, गांव की आबादी करीब 11 हजार होने तथा यहां प्रतिदिन हजारों श्रद्धालुओं के आवागमन के बावजूद दमकल की व्यवस्था आज तक नहीं की गई है। आग की घटनाओं से खासा नुकसान हो जाता है, लेकिन जिम्मेदारों की ओर से कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। गौरतलब है कि रामदेवरा धार्मिक स्थल है। यहां सैंकड़ों की संख्या में दुकानें, होटलें, धर्मशालाएं है। वर्ष में यहां छोटे बड़े चार मेले है। भादवा माह में यहां राजस्थान का सबसे बड़ा अंतरप्रांतीय मेला भी लगता है। इस दौरान यहां लगातार डेढ़ माह तक 30-40 लाख श्रद्धालु बाबा की समाधि के दर्शनों के लिए आते है। जिससे छोटा सा गांव भी महानगर का सा रूप ले लेता है। यहां दुकानों की संख्या भी सैकड़ों की बजाय हजारों में हो जाती है। इनमें अधिकांश दुकानें अस्थायी होती है, जो कपड़े के शामियानों में लगाई जाती है, जिनमें थोड़ी सी आग लगते ही कुछ ही देर में शामियाना जलकर ढेर हो जाता है तथा आसपास क्षेत्र की दुकानों को भी चपेट में ले लेता है। ऐसी परिस्थितियों में गांव में अग्निशमन वाहन की नितांत आवश्यकता रहती है। हालांकि मेले के दौरान अस्थायी रूप से पोकरण व जैसलमेर से दो-तीन अग्निशमन गांव में रहते है, लेकिन आम दिनों में यहां दमकल वाहन नहीं होने से आग की घटना के दौरान परेशानी होती है। गांव में कहीं पर भी कोई आग की घटना होती है, तो पोकरण, फलोदी, जैसलमेर से दमकल बुलवाई जाती है। दमकल पहुंचने में कम से कम एक घंटे का समय लग जाता है। इस दौरान आग विकराल रूप ले लेती है। गांव में करीब 8 साल पहले 26 फरवरी 2019 की रात भी आग से 30 से अधिक दुकानें जलकर राख हो गई थी।

फैक्ट फाइल –

-11 हजार गांव की आबादी
-50 से 60 लाख श्रद्धालु आते है पूरे साल में

-5 किमी में फैला हुआ है रामदेवरा
नुकसान से मिलेगी राहत
रामदेवरा में दमकल की व्यवस्था हो तो आग की किसी भी घटना के वक्त लोगों को तत्काल राहत मिल सकती है। आग पर काबू पाने के साथ बड़े नुकसान से बचा जा सकता है।
  • आइरखसिंह तंवर, सामाजिक कार्यकर्ता, जैसलमेर

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