राजस्थान में अवैध खनन के कारण पर्यावरण को भारी क्षति पहुंची है। अरावली पर्वतमाला, जो राजस्थान के पारिस्थितिक संतुलन की रीढ़ है, खनन के चलते जगह-जगह से क्षत-विक्षत हो रही है। कई गांवों में खनन से प्रदेश के पहाड़ खोखले हो गए हैं, कई जगह तो खाइयां तक बन गई है। कई स्थानों पर पहाड़ों के अस्तित्व ही समाप्त हो गए हैं। इसके साथ ही, भूजल स्तर में गिरावट, वनों की कटाई और जैव विविधता का नाश इस क्षेत्र के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर रहा है।
सरकार को चाहिए कि वह पारदर्शिता, पर्यावरण संरक्षण, और जनहित को प्राथमिकता देते हुए कठोर नीतियां लागू करे। साथ ही, खनन पट्टों के आवंटन में डिजिटल ट्रैकिंग और जनसुनवाई की प्रक्रिया को मजबूत किया जाए ताकि जनप्रतिनिधियों की जवाबदेही तय हो सके।
राजस्थान में खनन केवल विकास का साधन नहीं, बल्कि सत्ता, पर्यावरण और समाज के बीच संतुलन की एक कठिन परीक्षा भी है। यदि समय रहते इस पर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया गया, तो यह समृद्धि का साधन विनाश का कारण बन सकता है।