हालांकि, कोर्ट ने जांच पर रोक लगाने से इनकार कर दिया और भाया को निर्देश दिया कि वे सभी मामलों की जांच में पूरा सहयोग करें। इस मामले की सुनवाई जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने की।
भाया की ओर से दी गई ये दलीलें
प्रमोद जैन भाया की ओर से वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कोर्ट में दलील दी कि ये एफआईआर राजनीतिक बदले की भावना से दर्ज की गई हैं। उनका कहना था कि 2023 के राजस्थान विधानसभा चुनाव में हार और सत्तारूढ़ दल से मतभेद के कारण ये मामले उनके खिलाफ बनाए गए। रोहतगी ने कहा कि ये एफआईआर एक-दूसरे से मिलती-जुलती हैं और इन्हें राजनीतिक विरोधियों ने दायर करवाया है।
महाधिवक्ता ने दिया ये तर्क
वहीं, राजस्थान सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता शिव मंगल शर्मा ने याचिका का विरोध किया। उन्होंने कहा कि हर एफआईआर अलग-अलग घटनाओं, शिकायतकर्ताओं और अपराधों से जुड़ी है। इनमें अवैध खनन, फर्जी पट्टे जारी करना, वित्तीय गड़बड़ी और सरकारी दस्तावेजों में हेराफेरी जैसे गंभीर आरोप शामिल हैं। महाधिवक्ता ने तर्क दिया कि इन मामलों को एक साथ मिलाना कानूनी और व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है, क्योंकि ये अलग-अलग थानों में दर्ज हैं और कई मामलों में जांच काफी आगे बढ़ चुकी है।
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की दलीलें सुनने के बाद जांच पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। हालांकि, कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया कि अगली सुनवाई तक भाया के खिलाफ कोई सख्त कदम नहीं उठाया जाएगा। कोर्ट ने भाया को सभी मामलों में जांच में सहयोग करने का आदेश दिया और राजस्थान सरकार से चार हफ्तों में जवाब मांगा।
FIR अलग-अलग आरोपों से जुड़ी
बताते चलें कि यह याचिका राजस्थान हाई कोर्ट के 1 मई 2025 के फैसले को चुनौती देती है, जिसमें भाया की एफआईआर रद्द करने या मिलाने की मांग खारिज कर दी गई थी। हाई कोर्ट ने कहा था कि ये एफआईआर अलग-अलग आरोपों से जुड़ी हैं और एक ही घटना से नहीं हैं। एफआईआर में भाया और उनके करीबियों, जिनमें उनकी पत्नी भी शामिल हैं, पर अवैध खनन, सरकारी टेंडरों में धांधली, सार्वजनिक जमीन पर कब्जा और अन्य अपराधों के आरोप हैं। ये मामले बारां, अन्ता, केलवाड़ा, मांगरोल और किशनगंज थानों में दर्ज हैं।