उपराष्ट्रपति ने कहा कि अंकों और मानकीकरण की होड़ ने छात्रों में जिज्ञासा का अंत कर दिया है, जिससे शिक्षा केवल एक रटंत प्रक्रिया बनकर रह गई है। कोचिंग सेंटरों की असेंबली लाइन संस्कृति, रचनात्मक विचारों की बजाय ‘बौद्धिक ज़ॉम्बी’ पैदा कर रही है। उन्होंने इसे शिक्षा के फैक्टरीकरण की प्रवृत्ति बताया जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति की मूल भावना के विपरीत है।
उन्होंने कोचिंग संस्थानों से अपील की कि वे अपने संसाधनों का उपयोग कौशल केंद्रों में रूपांतरण के लिए करें और व्यावसायिक विज्ञापनों पर भारी खर्च की बजाय ज्ञान के वास्तविक वितरण पर ध्यान दें।
धनखड़ ने छात्रों से आह्वान किया कि वे अंकतालिका से ऊपर उठकर ज्ञान, विचार और सोचने की क्षमता को प्राथमिकता दें, क्योंकि यही उन्हें वैश्विक प्रतिस्पर्धा में सफल बनाएगा। उनके इस वक्तव्य ने देशभर में शिक्षा की दिशा और सोच को लेकर एक नई बहस को जन्म दे दिया है, क्या कोचिंग अब सचमुच पोचिंग बन रही है?