यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान के 12% सरकारी स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग शौचालय नहीं हैं और 7.3% स्कूलों में कोई शौचालय ही नहीं है। असर 2024 की रिपोर्ट बताती है कि 62.3% सरकारी स्कूलों की छात्राएं दूसरी कक्षा की किताबें भी नहीं पढ़ पातीं। मासिक धर्म के कारण हर महीने 7 दिन अनुपस्थिति के चलते एक छात्रा साल में 84 दिन स्कूल मिस करती है, जिससे पढ़ाई में पिछड़ाव और 8% ड्रॉपआउट दर बढ़ रही है।
डिप्टी सीएम दिया कुमारी ने जताई नाराजगी
‘काली बाई भील उड़ान योजना’ के तहत सैनेटरी नैपकिन वितरण का जिम्मा राजस्थान मेडिकल सर्विस कॉर्पोरेशन लिमिटेड (आरएमएससीएल) के पास है। अधिकारियों की मानें तो अप्रेल-जून 2024 तक पैड की खरीद हुई, लेकिन इसके बाद स्टॉक खत्म हो गया। स्कूलों और आंगनबाड़ी केंद्रों में सैनेटरी नैपकिन की कमी के कारण छात्राएं कपड़े का उपयोग करने को मजबूर हैं, जिससे स्वास्थ्य जोखिम और अनुपस्थिति बढ़ रही है। उपमुख्यमंत्री व महिला एवं बाल विकास मंत्री दिया कुमारी ने इस स्थिति पर नाराजगी जताई है।
पिछले पांच वर्षों का आंकड़ा यूनिसेफ, असर और राजस्थान शिक्षा विभाग के आंकड़ों के अनुसार, राजस्थान में स्वच्छता सुविधाओं की कमी लगातार गंभीर बनी हुई है। 2020 में 15% स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग शौचालय की कमी थी, जो 2024 में 12% हो गई। पानी की अनुपलब्धता 12% से घटकर 10% हुई, लेकिन मासिक धर्म के कारण अनुपस्थिति 24% से 20% के बीच रही। इस दौरान प्रभावित छात्राओं की संख्या 2.8 लाख से बढक़र 3.2 लाख हो गई।
कहां कितने बांटे जा रहे थे सैनेटरी नैपकिन-
उच्च प्राथमिक, माध्यमिक व उच्च माध्यमिक विद्यालयों में : 23,05,367
आंगनबाड़ी केन्द्रों : 95,58,274
आयुक्तालय कॉलेज शिक्षा : 2,38,976
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग : 23,961