गोयल ने बताया कि यह निर्णय न केवल पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह राज्य की पारंपरिक ग्रामीण संस्कृति, लोक आस्था और जैव विविधता की रक्षा की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल है। उन्होंने कहा कि ओरण भूमि सदियों से ग्रामीणों द्वारा संरक्षित रही है और अब इसे कानूनी संरक्षण मिलना बेहद आवश्यक था।
वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव अर्पणा अरोड़ा ने बताया कि ओरण जमीनों का सीमांकन सेटेलाइट रीमोट सेंसिंग तकनीक के माध्यम से किया जाएगा। राज्य के विभिन्न जिलों में फैली ओरण भूमि की पहचान कर उसे राजस्व अभिलेखों में वन भूमि के रूप में दर्ज करने की प्रक्रिया शीघ्र शुरू की जाएगी।
अरोड़ा ने यह भी स्पष्ट किया कि इस कार्य में स्थानीय समुदायों, पंचायती राज संस्थाओं और राजस्व विभाग की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी। उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिए कि इस प्रक्रिया के लिए एक ठोस कार्य योजना बनाकर उसे समयबद्ध रूप से लागू किया जाए। साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाए कि ओरण भूमि पर किसी प्रकार का अतिक्रमण या अवैध गतिविधि न होने पाए।
इस महत्वपूर्ण बैठक में राजस्व विभाग के प्रमुख शासन सचिव दिनेश कुमार, प्रधान मुख्य वन संरक्षक श्री अरिजीत बनर्जी, अनुराग भारद्वाज सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित रहे। इस निर्णय से न केवल राजस्थान की पारंपरिक ओरण संस्कृति को नया जीवन मिलेगा, बल्कि यह पर्यावरण संरक्षण और जैव विविधता की दिशा में भी एक प्रेरणादायक कदम साबित होगा।