युद्ध की गतिविधियों को नजदीकी से देखने वाले बाड़मेर के तत्कालीन कलक्टर आईसी श्रीवास्तव ने अपने कुछ अनुभव शेयर किए। उन्होंने बताया कि वर्ष 1971 में भारत-पाक युद्ध के समय मोर्चा सेना ने संभाल रखा था, लेकिन लोगों का जोश भी कम नहीं था। न दफ्तर बंद हुए और न कोर्ट-कचहरी। हमले के समय लोगों को सुरक्षित रखने के लिए सीमावर्ती जिलों में प्रमुख स्थानों पर गहरे गढ़्ढे खुदवाए गए।
एयरबेस बचाने के लिए फैलाया डीजल
बाड़मेर के तत्कालीन कलक्टर आईसी श्रीवास्तव ने बताया कि लोगों ने युद्ध के बारे में सुना है, हमने तो देखा और युद्ध के बाद करीब 11 माह पाकिस्तान के छाछरो तक कलक्ट्री की। दुश्मन का विमान आने की सूचना मिलने पर तत्काल लाइट बंद करने को कहा, लेकिन लाइट बंद होती उससे पहले विमान आकर चला गया। उसके बाद ऐसा उपाय किया कि एयरबेस दिख ही नहीं पाए। उन्होंने कहा कि इलाके में पावर हाउस का डीजल जमीन पर फैला दिया। चांदनी रात होने से इलाका चमकदार हो गया, ऊपर से कुछ दिखना ही संभव नहीं था। पूरे कस्बे में गली-गली साउंड सिस्टम लगवाया और मैं एक कमरे से लोगों तक अपनी बात पहुंचाता। लोगों की सुरक्षा के लिए ट्रेंच खुदवाईं। खुद भी अंधेरे में 10 फीट गहरे गढ्ढे से लोगों से संपर्क करता।