गर्भ में ही वह जीव को भी मानव के संस्कार प्रदान करती है। यही उसकी दिव्यता है। वह जीव जो अपने पूर्व जन्म में पशु शरीर में रहा हो, तो मां अपने सपनों, खानपान आदि संकेतों से जानती है कि जीव कहां से आ रहा है। उन्होंने कहा कि मां जीव के शरीर का निर्माण करती है साथ ही उस जीव के आत्मा को भी संस्कारित कर रही है।
श्रोता बोले-स्त्री की दिव्यता की जानकारी नई और अद्भुत
श्रोताओं का कहना था कि वे पुरुष और स्त्री की क्षमता व सशक्तता के बारे में जानते हैं किन्तु स्त्री की दिव्यता के बारे में यह जानकारी नई और अद्भुत है। श्रोताओं की जिज्ञासा के उत्तर में कोठारी ने बताया कि बीज जब पेड़ के रूप में विकसित होता है तब वह बीज तो नहीं दिखता किन्तु पेड़ अपने पूरे जीवन में विकास पाता है। यह मां ही उसमें प्रवाहित रहती है उसे बड़ा करती है। यह भी मां की ही दिव्यता है। उन्होंने कहा कि आज महिलाएं पुरुष की तरह बौद्धिक होती जा रही हैं। प्रतिस्पर्धा का दौर हो गया है। यही समस्याओं का कारण है। जबकि स्त्री पुरुष से बहुत अधिक सशक्त है।