राजस्थान में बिना जांच-पड़ताल 140 बजरी की खानों को विभाग ने दे दी हरी झंडी, हो सकता है बड़ा नुकसान
Rajasthan News: राजस्थान में मानसून से पहले और बाद में नदियों में बजरी की उपलब्धता को लेकर अध्ययन तो नहीं कराया जा रहा। लेकिन नई बजरी खानों के लिए स्वीकृति जरूर जारी की जा रही हैं।
सुनील सिंह सिसोदिया जयपुर। राजस्थान में मानसून से पहले और बाद में नदियों में बजरी की उपलब्धता को लेकर अध्ययन तो नहीं कराया जा रहा। लेकिन नई बजरी खानों के लिए स्वीकृति जरूर जारी की जा रही हैं। जबकि सुप्रीम कोर्ट भी मानसून को लेकर प्री और पोस्ट स्टडी कराने के लिए कह चुका है।
बड़ी बात यह है कि बिना इस स्टडी के ही करीब 140 बजरी खानों को विभाग ने स्वीकृति देकर पर्यावरण एनओसी व अन्य कार्रवाई के लिए आगे बढ़ा दिया है। प्रदेश में हर साल 700 लाख टन से ज्यादा बजरी की मांग रहती है। ऐसे में बड़े पैमाने पर बजरी का खनन तो हो रहा है, लेकिन मानसून में बजरी कितनी आ रही है, इसका पता ही नहीं। इससे नदियों की पारिस्थिक स्थिति में बदलाव का खतरा बढ़ता जा रहा है। कुछ साल पहले कोठारी में ही एक से दो किमी क्षेत्र में नदी का बहाव बदलने की खबरें आई थी।
पर्यावरण संतुलन बनाए रखने को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहले ही नई खानों के आवंटन के लिए निमयों की सख्ती से पालना के लिए कह चुका है। इन नियमों की पालना को लेकर हाईकोर्ट भी कमेटी गठन के निर्देश दे चुका है। इसके बावजूद नदियों की बजरी को लेकर स्टडी कराए बिना खान आवंटन करना नदियों के खतरा बढ़ाना है।
मांग सालाना 700 लाख टन
प्रदेश में सालाना बजरी की मांग 700 लाख टन से ज्यादा है। लेकिन अभी चल रही बजरी खानों से इसकी आधी बजरी ही निकलना माना जा रहा है। इन हालात में शेष बजरी जरूरत मंदों को अवैध तरीके से निकाल माफिया मोटी कमाई कर रहे हैं।
फाइल फोटो पत्रिका
स्टडी की इसलिए आवश्यकता
1. नदी के प्राकृतिक प्रवाह पैटर्न और बजरी उपलब्धता के साथ खनन नियंत्रित करना। 2. नदी से निकाले जानेवाली बजरी और अन्य उपखनिजों की मात्रा नर्धारित करना। 3. नदी के पारिस्थितिकी तंत्र समझना और संरक्षित करना। 4. प्राकृतिक प्रवाह, खनिज जमाव, खनन नियमों और पर्यावरण संरक्षण। 5. बजरी के अवैध खनन को रोकने और पर्यावरण को संरक्षित करने में मदद। 6. नदी के बजरी खनन से जीवों के आवास को होने वाले नुकसान का अध्ययन।
भुगतान नहीं होने से अटकी स्टडी
खान विभाग ने पिछले साल मानसून को देखते हुए ‘प्री’ और ’पोस्ट’ स्टडी को लेकर केन्द्र सरकार की कोल इंडिया से जुड़ी सेन्ट्रल माइन प्लानिंग एण्ड डिजाइन इंस्टीट्यूट लिमिटेड (सीएमपीडीआई) को काम सौंपा था। कंपनी ने मानसून से पहले स्टडी की, लेकिन भुगतान नहीं मिलने से मानसून के बाद स्टडी नहीं की। इससे तुलनात्मक रिपोर्ट ही नहीं मिली। इस साल तो स्टडी को लेकर किसी को काम ही नहीं सौंपा गया।
फोटो- पत्रिका
ऐसे तय होती है बजरी खनन की सीमा
सीएमपीडीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक नदी पेटे में बजरी खनन नमी के एक फीट ऊपर तक ही हो सकता है। उदाहरण के रूप में देखा जाए तो यदि 1.30 मीटर पर बजरी में पानी है, तो बजरी खनन की अनुमति 1 मीटर गहराई तक ही दी जा सकती है। बनास नदीं में 15 से 20 फीट से भी ज्यादा गहरे गड्डे खनन के दौरान देखे जा सकते हैं। माना जाता है कि नदियों में रेत खनन पूरी तरह नदी पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा और नदी की आकृति विज्ञान के संरक्षण के मानदंडों पर आधारित होना चाहिए।
राज्य में बजरी के प्रमुख स्रोत
बजरी के राज्य में प्रमुख स्रोतों में बनास, लूणी, कोठारी, खाली, काटली, जवाई नदी को माना जाता है। इसमें अकेले बनास नदी से ही प्रदेश की कुल मांग की 70 फीसदी तक बजरी निकाली जाती है।
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