Sawan Fasting: सावन में मांस-मछली खाना क्यों नहीं चाहिए? जानिए आयुर्वेद, विज्ञान और धर्म तीनों की नजर से विशेषज्ञ की राय
Sawan Fasting: सावन के महीने में मांसाहार से बचने के पीछे न केवल धार्मिक विश्वास, बल्कि स्वास्थ्य और वैज्ञानिक पहलू भी हैं। आइए जानते हैं एक्सपर्ट के जरिए कि क्या सावन में मांस और मछली क्यों नहीं खानी चाहिए?
Sawan Fasting: सावन का महीना भारतीय संस्कृति में बेहद पावन माना जाता है। हरियाली, बारिश और भक्ति के इस मौसम में खानपान से जुड़ी कुछ मान्यताएं भी बेहद खास होती हैं। अक्सर लोग इस महीने में मांस और मछली जैसे तामसिक भोजन से दूरी बना लेते हैं। लेकिन ऐसा क्यों? क्या इसका कोई वैज्ञानिक कारण है या ये सिर्फ धार्मिक आस्था से जुड़ा है?हमने इस विषय पर बात की आयुर्वेदाचार्य डॉ. अर्जुन राज से, जिन्होंने हमें बताया कि सावन में मांसाहार न करने के पीछे केवल धार्मिक कारण ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक और स्वास्थ्य से जुड़ी गंभीर वजहें भी हैं। आइए जानते हैं विस्तार से।
डॉ. अर्जुन राज (आयुर्वेदिक चिकित्सक) बताते हैं कि सावन के महीने को भगवान शिव को समर्पित माना जाता है। यह महीना श्रद्धा, भक्ति, संयम और पवित्रता का प्रतीक है। इस दौरान लोग उपवास करते हैं, पूजा-पाठ में लीन रहते हैं और सात्विक जीवनशैली अपनाते हैं। मांस और मछली जैसे तामसिक भोज्य पदार्थ शरीर में उत्तेजना और अशुद्धता बढ़ाते हैं, जिससे मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धता में बाधा आती है।
तामसिक भोजन से कैसे प्रभावित होती है मन
आयुर्वेद के अनुसार भोजन को तीन भागों में बांटा गया है – सात्विक, राजसिक और तामसिक। सात्विक भोजन शरीर को ऊर्जा देने के साथ ही मन को शांत और शुद्ध बनाता है, जबकि तामसिक भोजन जैसे मांस-मछली, नकारात्मक भावनाओं, क्रोध और आलस्य को बढ़ाता है। इसलिए सावन जैसे पवित्र महीने में तामसिक भोजन से परहेज़ कर सात्विक भोजन करना न केवल स्वास्थ्य के लिए, बल्कि मन और आत्मा की शुद्धि के लिए भी जरूरी माना गया है।
धार्मिक महत्व
धार्मिक दृष्टिकोण से सावन महीना भगवान शिव की आराधना का विशेष समय है। इस महीने में उपवास, रुद्राभिषेक, और शिव पूजा का महत्व है। कई मान्यताओं के अनुसार, तामसिक भोजन करने से शरीर और मन की पवित्रता भंग होती है, जिससे पूजा का पूर्ण फल नहीं मिलता।
बारिश में क्यों मांस खाना हानिकारक है- वैज्ञानिक कारण
सावन का मौसम बारिश और उमस भरा होता है। इस मौसम में वातावरण में नमी के कारण फंगल इंफेक्शन और बैक्टीरिया के पनपने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। मांसाहारी भोजन जैसे मीट और मछली जल्दी खराब हो सकते हैं और इनमें फंगल या बैक्टीरियल संक्रमण की आशंका अधिक रहती है।डॉ. अर्जुन राज के अनुसार, “बारिश के मौसम में जल स्रोत जैसे नदियां और तालाब भी दूषित होते हैं। इनसे निकली मछलियां से भी क्रमण फेल सकता है जिससे उनमें हानिकारक टॉक्सिन्स मौजूद हो सकते हैं।”
पाचन तंत्र कमजोर
बारिश के दिनों में शरीर की पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है। आयुर्वेद के अनुसार, इस मौसम में अग्नि (Digestive Fire) मंद पड़ जाती है, जिससे भारी भोजन को पचाने में अधिक समय लगता है। मांसाहारी भोजन काफी भारी और वसा युक्त होता है, जिसे पचाना सामान्य से अधिक कठिन हो जाता है। इसका असर सीधा हमारे पेट, लीवर और इम्यून सिस्टम पर पड़ता है।
संक्रमण का खतरा कई गुना बढ़ता है
सावन के मौसम में अक्सर नमी और बारिश के कारण वातावरण में बैक्टीरिया और कीटाणुओं की संख्या तेजी से बढ़ जाती है, जिसका सीधा असर हमारे खानपान पर पड़ता है। खासतौर पर मांस, मछली और सीफूड जैसे नॉन-वेज फूड में बैक्टीरिया तेजी से पनपते हैं। बारिश के मौसम में जलजनित रोगों का खतरा भी बढ़ जाता है, जिससे फिश और सीफूड का सेवन करने से संक्रमण और बीमारियों की संभावना ज्यादा हो जाती है। दूषित मीट या समुद्री भोजन खाने से फूड प्वाइजनिंग, उल्टी-दस्त, पेट दर्द और बुखार जैसी समस्याएं हो सकती हैं। यही कारण है कि सावन के महीने में शुद्ध, हल्का और पौष्टिक शाकाहारी भोजन करने की सलाह दी जाती है, जिससे शरीर स्वस्थ बना रहे और रोग प्रतिरोधक क्षमता भी मजबूत हो।
Hindi News / Health / Sawan Fasting: सावन में मांस-मछली खाना क्यों नहीं चाहिए? जानिए आयुर्वेद, विज्ञान और धर्म तीनों की नजर से विशेषज्ञ की राय