scriptन्याय में देरी, न्याय से वंचित करने का जीता-जागता उदाहरण है, जिसमें पक्षकार लगभग छह दशक से अदालतों का समय बर्बाद कर रहे | - हाईकोर्ट ने की तल्ख टिप्पणी, 59 साल पुराने जमीन विवाद की सेकेंड अपील खारिज | Patrika News
ग्वालियर

न्याय में देरी, न्याय से वंचित करने का जीता-जागता उदाहरण है, जिसमें पक्षकार लगभग छह दशक से अदालतों का समय बर्बाद कर रहे

हाईकोर्ट की एकल पीठ ने विदिशा की विवादित भूमि को लेकर पिछले छह दशक से चल रही कानूनी लड़ाई पर सख्त टिप्पणी करते हुए अपील खारिज कर दी है।

ग्वालियरAug 13, 2025 / 10:54 am

Balbir Rawat

gwalior high court

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हाईकोर्ट की एकल पीठ ने विदिशा की विवादित भूमि को लेकर पिछले छह दशक से चल रही कानूनी लड़ाई पर सख्त टिप्पणी करते हुए अपील खारिज कर दी है। कोर्ट ने कहा कि यह मामला न्याय में अनावश्यक देरी और न्यायिक समय की बर्बादी का जीता-जागता उदाहरण है। पक्षकार लगभग छह दशक से अदालतों का समय बर्बाद कर रहे हैं। अपीलकर्ता और उसके पूर्वज नए नए मुकदमे दायर कर रहे हैं। कोर्ट ने अपीलार्थी पर 25 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया। जुर्माने की राशि एक माह के भीतर जमा करने का निर्देश दिया, अन्यथा वसूली और अवमानना कार्यवाही की चेतावनी दी।
मामला विदिशा के न्यू हॉस्पिटल रोड स्थित सर्वे नंबर 1042/2007 (नया नंबर 3532) से जुड़ा है। अपीलकर्ता प्रमोद कुमार जैन का दावा था कि वे 1965 से इस जमीन पर काबिज हैं और नगर निगम द्वारा अवैध रूप से बाड़बंदी की गई है। उन्होंने स्वामित्व घोषणा, स्थायी निषेधाज्ञा और बाड़ हटाने की मांग करते हुए सिविल वाद दायर किया।

पहले भी हार चुके हैं कई बार मुकदमा

अदालत ने पाया कि अपीलकर्ता के पिता चिरौंजी लाल ने 1966 में इसी जमीन के स्वामित्व को लेकर मुकदमा दायर किया था, जिसमें यह तय हो गया था कि जमीन सर्वे नंबर 1042/6 का हिस्सा है, न कि 1042/7 का। यह फैसला जिला कोर्ट से हाईकोर्ट तक कायम रहा। इसके बाद भी अपीलकर्ता ने 1994, 2008 और अन्य वर्षों में कई बार नए वाद दायर किए। अदालत ने कहा कि अपीलकर्ता के अपने बयान में साफ है कि 1976 में, पुराने मुकदमे हारने के बाद, उन्होंने नए निर्माण शुरू किए थे। कोर्ट ने कहा कि 1966 से शुरू हुआ यह विवाद 2025 तक खिंच चुका है।

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