सूरज 1995 को अपने गृह जिले भिण्ड को छोडकऱ शहर के पिंटू पार्क के आगे जडेरूआ कलां में आकर परिवार के साथ बस गए थे। वह 11 अगस्त 1996 से यानि 29 सालों से हर दिन 25 से 30 किमी साइकिल रोजाना चलाकर जेयू कैंपस में आते है। वह जडेरूआ कलां से 13 किमी दूर जीवाजी विश्वविद्यालय में सुबह साढ़े 10 बजे ऑफिस आ जाते हैं और शाम को साढ़े छह बजे साइकिल से ही वापस घर जाते हैं। वह चाहते तो बाइक या गाड़ी ले सकते थे, लेकिन उन्होंने नहीं लेने का फैसला लिया है। क्योंकि वह पर्यावरण से प्यार करते हैं। इन 29 सालों में उन्होंने अब तक पांच साइकिल बदली हैं। बाजार भी साइकिल से जाते हैं।
पत्रिका से बातचीत में वह कहते है कि यहां आने के बाद उन्हें एहसास हुआ कि आज लोग भौतिक चीजों के पीछे कितना भाग रहे हैं। लोग प्राकृतिक दुनिया को नजर अंदाज कर रहे हैं तो उन्होंने साइकिल चलाने का फैसला लिया। जब वह साइकिल से ऑफिस आने लगे तो उनके दोस्तों ने उनका काफी मजाक उड़ा, लेकिन फिर भी उन्होंने साइकिल चलाना बंद नहीं किया। बाद में सूरज को साइकिल चलाते देखकर कई लोग प्रेरणा लेकर साइकिल का सफर शुरू कर चुके हैं। वह बताते हैं कि वह पर्यावरण से बहुत प्यार करते हैं और साइकिल से पैसा तो बचता है ही, शरीर भी स्वस्थ रहता है और प्रदूषण भी नहीं होता है। उन्हें कहीं भी जाना होता है वह साइकिल से ही जाते हैं।
29 सालों से साइकिल से ऑफिस जाने वाले जेयू कर्मचारी सूरज सिंह यादव ने पर्यावरण को लेकर कविता के माध्यम से संदेश देना चाहते है। गाडिय़ों की शौक शान से हम सबको बीमार मत करो, साइकिल चलाकर और पौधे लगाकर हमारे देश को प्रदूषण से मुक्त करो।