scriptफर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्र पर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, अस्पताल रजिस्टर में दर्ज न हो तो प्रमाण पत्र अमान्य | हाईकोर्ट की एकल पीठ ने मंगलवार को एक अहम आदेश सुनाते हुए उन शिक्षकों की नियुक्ति रद्द कर दी, जिन्होंने फर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी हासिल की थी। कोर्ट ने कहा कि एक वैध दिव्यांग प्रमाण पत्र का अस्पताल के डिसेबिलिटी रजिस्टर में दर्ज होना अनिवार्य है। | Patrika News
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फर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्र पर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, अस्पताल रजिस्टर में दर्ज न हो तो प्रमाण पत्र अमान्य

हाईकोर्ट की एकल पीठ ने मंगलवार को एक अहम आदेश सुनाते हुए उन शिक्षकों की नियुक्ति रद्द कर दी, जिन्होंने फर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी हासिल की थी। कोर्ट ने कहा कि एक वैध दिव्यांग प्रमाण पत्र का अस्पताल के डिसेबिलिटी रजिस्टर में दर्ज होना अनिवार्य है।

ग्वालियरAug 20, 2025 / 11:09 am

Balbir Rawat

high court

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हाईकोर्ट की एकल पीठ ने मंगलवार को एक अहम आदेश सुनाते हुए उन शिक्षकों की नियुक्ति रद्द कर दी, जिन्होंने फर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी हासिल की थी। कोर्ट ने कहा कि एक वैध दिव्यांग प्रमाण पत्र का अस्पताल के डिसेबिलिटी रजिस्टर में दर्ज होना अनिवार्य है। यदि वह दर्ज ही नहीं है तो उसकी वैधता संदिग्ध मानी जाएगी और ऐसे दस्तावेज पर मिली नियुक्ति टिक नहीं सकती। कोर्ट ने विभागीय अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर गंभीर नाराजगी जताते हुए कहा कि दस्तावेजों का सत्यापन दो-दो बार हुआ, उसके बाद भी फर्जी प्रमाण पत्रों के आधार पर नियुक्ति दे दी गई। यह गंभीर लापरवाही है, जिसके कारण सैकड़ों उम्मीदवारों का करियर दांव पर लग गया। भविष्य में इस तरह की स्थिति से बचने के लिए सरकार को कठोर कदम उठाने होंगे।
दरअसल मुरैना में 77 उम्मीदवारों ने फर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्र पर शासकीय माध्यमिक व प्राथमिक स्कूलों में शिक्षक की नौकरी ली। इन प्रमाण पत्रों की जांच हुई तो ये फर्जी पाए गए। विभाग ने इन्हें नौकरी से हटा दिया। नौकरी से बर्खास्त किए जाने के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की। याचिकाकर्ताओं ने अदालत में दलील दी कि उन्हें बिना सुनवाई का अवसर दिए नियुक्ति से वंचित कर दिया गया, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन है। उन्होंने यह भी कहा कि उनके प्रमाण पत्र मेडिकल बोर्ड से जारी हुए थे और विभाग ने नियुक्ति से पूर्व दो बार जांच भी की थी। इसके अलावा कुछ प्रमाण पत्र ऑनलाइन पोर्टल पर भी उपलब्ध हैं। कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद शिक्षकों की नियुक्ति रद्द कर दी। ज्ञात है कि 26 शिक्षकों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।

सुनवाई का अवसर दिए जाने से नतीजा बदलने वाला नहीं

कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि यह मात्र अनियमितता नहीं है। प्रमाण पत्र पर सीरियल नंबर अंकित हैै। अस्पताल रजिस्टर में सीरियल नंबर मौजूद ही नहीं है तो इसका अर्थ है कि दस्तावेज फर्जी है। यह स्थिति सीधे तौर पर प्रमाण पत्र की प्रामाणिकता पर सवाल खड़ा करती है।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि सुनवाई का अवसर देने से भी नतीजा बदलने वाला नहीं था, क्योंकि मूल तथ्य यही है कि प्रमाण पत्र अस्पताल की रजिस्टर में दर्ज नहीं है।

-हाईकोर्ट ने आदेश में स्पष्ट किया कि फर्जी दस्तावेज़ों पर मिली सरकारी नौकरी बचाना बेहद मुश्किल है। साथ ही विभागों पर भी यह दबाव बनेगा कि वे दस्तावेज़ सत्यापन की प्रक्रिया को और कड़ा करें। अदालत ने यह भी संकेत दिया कि इस तरह की लापरवाही से न केवल चयन प्रक्रिया की पारदर्शिता प्रभावित होती है बल्कि असली पात्र उम्मीदवार भी वंचित हो जाते हैं।

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