दरअसल मुरैना में 77 उम्मीदवारों ने फर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्र पर शासकीय माध्यमिक व प्राथमिक स्कूलों में शिक्षक की नौकरी ली। इन प्रमाण पत्रों की जांच हुई तो ये फर्जी पाए गए। विभाग ने इन्हें नौकरी से हटा दिया। नौकरी से बर्खास्त किए जाने के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की। याचिकाकर्ताओं ने अदालत में दलील दी कि उन्हें बिना सुनवाई का अवसर दिए नियुक्ति से वंचित कर दिया गया, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन है। उन्होंने यह भी कहा कि उनके प्रमाण पत्र मेडिकल बोर्ड से जारी हुए थे और विभाग ने नियुक्ति से पूर्व दो बार जांच भी की थी। इसके अलावा कुछ प्रमाण पत्र ऑनलाइन पोर्टल पर भी उपलब्ध हैं। कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद शिक्षकों की नियुक्ति रद्द कर दी। ज्ञात है कि 26 शिक्षकों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।
सुनवाई का अवसर दिए जाने से नतीजा बदलने वाला नहीं
कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि यह मात्र अनियमितता नहीं है। प्रमाण पत्र पर सीरियल नंबर अंकित हैै। अस्पताल रजिस्टर में सीरियल नंबर मौजूद ही नहीं है तो इसका अर्थ है कि दस्तावेज फर्जी है। यह स्थिति सीधे तौर पर प्रमाण पत्र की प्रामाणिकता पर सवाल खड़ा करती है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि सुनवाई का अवसर देने से भी नतीजा बदलने वाला नहीं था, क्योंकि मूल तथ्य यही है कि प्रमाण पत्र अस्पताल की रजिस्टर में दर्ज नहीं है। -हाईकोर्ट ने आदेश में स्पष्ट किया कि फर्जी दस्तावेज़ों पर मिली सरकारी नौकरी बचाना बेहद मुश्किल है। साथ ही विभागों पर भी यह दबाव बनेगा कि वे दस्तावेज़ सत्यापन की प्रक्रिया को और कड़ा करें। अदालत ने यह भी संकेत दिया कि इस तरह की लापरवाही से न केवल चयन प्रक्रिया की पारदर्शिता प्रभावित होती है बल्कि असली पात्र उम्मीदवार भी वंचित हो जाते हैं।