दरअसल गंगादास की बड़ी शाला का 1968 में ट्रस्ट बनाया गया। ट्रस्ट गठन के बाद ट्रस्टियों ने जमीनों को बेचने शुरू कर दिया। शहर की अलग-अलग जमीनों का विक्रय कर दिया। यह मामला कलेक्टर के संज्ञान में आया तो आदेश पारित किया और कलेक्टर को प्रबंधक घोषित किया गया। ट्रस्ट ने जो जिन जमीनों का विक्रय किया था। शासन ने उन जमीनों की रजिस्ट्री को शून्य करने के लिए 2010 में दावा पेश किया। दावे के खिलाफ ट्रस्ट मंदिर रामजानकी गंगादास की बड़ी शाला लक्ष्मीबाई कॉलोनी ने हाईकोर्ट में सिविल रिवीजन दायर की। 7 मई 2011 को हाईकोर्ट ने सिविल दावे की सुनवाई पर रोक लगा दी। इसके बाद से दावे की सुनवाई रुकी थी, लेकिन शासन हाईकोर्ट में जल्द सुनवाई का आवेदन लगाया। याचिका सुनवाई में आई। शासकीय अधिवक्ता शैलेंद्र सिंह कुशवाह ने कोर्ट के समक्ष फैक्ट रखे। ट्रस्ट ने अपनी याचिका को वापस लेने के लिए आवेदन लगाया। इसको लेकर कोर्ट ने नाराजगी जताई। कहा कि 14 साल तक एक सुनवाई को रोका गया।
क्या है मामला – ट्रस्ट ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। उनकी ओर से तर्क दिया कि ट्रस्ट के खिलाफ दावा नहीं लगाया जा सकता है। शासन ने ट्रस्ट की याचिका का विरोध किया। शासकीय अधिवक्ता ने तर्क दिया कि धारा 25 के तहत ट्रस्ट के खिलाफ दावा लाया जा सकता है। जमीन सरकारी हैं। जमीनों को बेचा गया है। 150 करोड़ की जमीन को वापस लेने के लिए लगाया था दावा – शासन ने 150 करोड़ की जमीनों को वापस लेने के लिए दावा लगाया था। शासन का तर्क था कि 1940 के बाद से मंदिर की जमीन का कोई मालिक नहीं हो सकता था। जमीन मंदिर के नाम रहेगी और वह माफी की जमीन है। – ट्रस्ट ने जमीनों को अवैध रुप से बेच दिया। – 12 जुलाई 1974 को जमीन मंदिर की जमीन कलेक्टर के नाम करने का शासन का सर्कुलर आया था। इस आदेश के तहत कलेक्टर को जमीन का प्रबंधक बनाया गया।