scriptक्या 2027 की सियासी जमीन के लिए तैयार हो रहा इटावा का केदारेश्वर महादेव मंदिर? 2024 में हुई थी प्राण-प्रतिष्ठा | Is Etawah's Kedareshwar Mahadev temple getting ready for the political ground of 2027? Pran-pratishtha was done in 2024 | Patrika News
इटावा

क्या 2027 की सियासी जमीन के लिए तैयार हो रहा इटावा का केदारेश्वर महादेव मंदिर? 2024 में हुई थी प्राण-प्रतिष्ठा

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के गृह जिले इटावा में 11 एकड़ ज़मीन पर बन रहा केदारेश्वर महादेव मंदिर तेजी से चर्चा में है। मंदिर का शिलान्यास 2021 में स्वयं अखिलेश ने किया था। वहीं जनवरी 2024 में इस मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हुई थी।

इटावाJul 05, 2025 / 05:18 pm

Avaneesh Kumar Mishra

केदारेश्वर मंदिर यूपी में चर्चा का बना नया केंद्र,PC-एक्स

उत्तर प्रदेश की राजनीति में जहां अयोध्या के राम मंदिर ने भाजपा के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को ऊर्जा दी है, वहीं अब समाजवादी पार्टी (सपा) इटावा में बन रहे केदारेश्वर महादेव मंदिर को एक वैकल्पिक सांस्कृतिक केंद्र के रूप में सामने ला रही है। यह मंदिर न सिर्फ श्रद्धा का प्रतीक बनता जा रहा है, बल्कि 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले उभरती राजनीतिक प्रतिस्पर्धा का नया अखाड़ा भी बन गया है।
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के गृह जिले इटावा में 11 एकड़ ज़मीन पर बन रहा केदारेश्वर महादेव मंदिर तेजी से चर्चा में है। मंदिर का शिलान्यास 2021 में स्वयं अखिलेश ने किया था और जनवरी 2024 में इसकी प्राण प्रतिष्ठा उनकी पत्नी एवं सांसद डिंपल यादव ने की थी। यह वही समय था जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन कर रहे थे। दोनों मंदिर लगभग समान समय पर बनकर तैयार हो रहे हैं, और यह समानता महज़ इत्तेफाक नहीं है।
राजनीतिक विश्लेषक इसे भाजपा के ‘राम मंदिर नैरेटिव’ के जवाब में सपा का ‘शिव मंदिर नैरेटिव’ मान रहे हैं। राम मंदिर के जरिए भाजपा ने हिन्दू आस्था के केंद्र में खुद को स्थापित किया, वहीं सपा अब इस धारणा को तोड़ने की कोशिश कर रही है कि वह केवल अल्पसंख्यक की राजनीति करती है।

केदारेश्वर मंदिर में नहीं हो रहा सीमेंट का उपयोग

केदारेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण उसी शिल्पकला और तकनीक से हो रहा है जिससे राम मंदिर का हुआ। कृष्णपुरुष ग्रेनाइट, त्रिबंधन तकनीक (जिसमें चूना, शहद, केला, गुड़ आदि मिलाकर पत्थर जोड़े जाते हैं) का प्रयोग हुआ है। इसमें न तो सीमेंट है, न लोहे की रॉड। तमिलनाडु के कन्याकुमारी से वही ग्रेनाइट मंगवाया गया है जिससे रामलला की मूर्ति बनी थी।
इसके अलावा, मंदिर के शिल्प में उत्तर और दक्षिण भारत की सांस्कृतिक एकता का संदेश भी दिया गया है। प्रवेश द्वार तंजावुर के वैथीश्वरन मंदिर से प्रेरित है और निर्माण कार्य में तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के विशेषज्ञ शामिल हैं।
एक और दिलचस्प बात यह है कि यह मंदिर केदारनाथ मंदिर के मॉडल पर आधारित है लेकिन उससे एक इंच छोटा है, जिससे इसे सम्मानसूचक दूरी के तौर पर देखा जा रहा है।

सपा की छवि सुधारने की कोशिश या रणनीति?

सपा लंबे समय से भाजपा के आरोपों का सामना करती रही है कि वह मुस्लिम करती है और हिंदू आस्थाओं से दूरी बनाकर चलती है। राम मंदिर के भूमि पूजन से लेकर उद्घाटन तक, अखिलेश और उनकी पार्टी दूर रहे। भाजपा ने इसे लेकर लगातार उन पर हमले किए। अब सपा जिस तरीके से शिव मंदिर के निर्माण को आगे बढ़ा रही है, वह सीधे भाजपा के नैरेटिव को चुनौती देने की रणनीति दिखती है।
सपा नेता गोपाल यादव कहते हैं, ‘सपा को हिंदू विरोधी बताना भाजपा का दुष्प्रचार है। इटावा में ही हनुमान जी की भव्य मूर्ति है, कृष्ण की प्रतिमा बन रही है और अखिलेश जी खुद नवरात्रि में नौ दिन व्रत रखते हैं। हमने कभी अपनी आस्था का प्रदर्शन नहीं किया, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम आस्था से दूर हैं।’

भाजपा का पलटवार: ‘राजनीतिक नकल है यह’

भाजपा इस पूरे घटनाक्रम को सपा की राजनीतिक मजबूरी और वोट बैंक साधने की कोशिश मानती है। भाजपा के इटावा जिलाध्यक्ष अरुण गुप्ता ने कहा, ‘जिन्होंने कभी राम मंदिर जाने से मना किया, वो अब शिव मंदिर बना रहे हैं। यह उनकी रणनीतिक बौखलाहट है।’ उन्होंने सपा के ‘PDA’ (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) नारे पर तंज कसते हुए कहा, ‘उनका PDA केवल यादवों तक सीमित है, मंदिर बनाने से उनकी छवि नहीं बदलने वाली।’
राजनीतिक बहस से अलग, स्थानीय लोग इस मंदिर को रोज़गार और विकास का केंद्र मान रहे हैं। मंदिर स्थल के बाहर चाय की दुकान चलाने वाले हुकुम सिंह कहते हैं, ‘राम मंदिर नहीं जा सके, लेकिन यहां शिव के दर्शन मिल रहे हैं और दुकानदारी भी चल रही है।’ वहीं श्रद्धालु प्रिया सोनी कहती हैं, ‘हम केदारनाथ नहीं जा सकते, लेकिन इटावा में ही अब दर्शन संभव हैं।’

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