scriptसंयम, त्याग और वीतराग धर्म में ही आत्मा का सच्चा सुख | The true happiness of the soul lies in self-restraint, sacrifice and the religion of detachment | Patrika News
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संयम, त्याग और वीतराग धर्म में ही आत्मा का सच्चा सुख

जीवन का सच्चा सुख भोग में नहीं, त्याग में है। व्यक्ति को शुभ भावों के साथ अपनी लेश्या को शुभ पवित्र बनाते हुए हठाग्रही, दुराग्रही और कदाग्रही नहीं बनना चाहिए। यह विचार ज्येष्ठ पुष्कर भवन, मागडी रोड़ स्थित पुष्कर जैन आराधना केंद्र में विराजित उप प्रवर्तक नरेश मुनि ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि संसार […]

बैंगलोरAug 01, 2025 / 06:22 pm

Bandana Kumari

जीवन का सच्चा सुख भोग में नहीं, त्याग में है। व्यक्ति को शुभ भावों के साथ अपनी लेश्या को शुभ पवित्र बनाते हुए हठाग्रही, दुराग्रही और कदाग्रही नहीं बनना चाहिए।

यह विचार ज्येष्ठ पुष्कर भवन, मागडी रोड़ स्थित पुष्कर जैन आराधना केंद्र में विराजित उप प्रवर्तक नरेश मुनि ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि संसार के भोग जीव को अनंत काल तक चार गतियों में भटकाने वाले और रुलाने वाले हैं। महापुरुषों ने संसार की असारता का चिंतन करते हुए भोगों पर विजय प्राप्त की और अपनी आत्मसाधना के बल पर संयम मार्ग में प्रवेश किया और परम पद मुक्ति को प्राप्त किया। हमें भी उन महान संयमी आत्माओं के जीवन से प्रेरणा लेते हुए अपने आत्म स्वरूप का सही बोध प्राप्त कर वीतराग मार्ग का अनुसरण करना चाहिए।शालिभद्र मुनि कहा कि आकर्षित होना अलग बात है और उससे प्रभावित होना अलग बात है। संसार की वस्तुओं में क्षणिक आकर्षण और सुख है। आत्मा का सच्चा सुख आनंद वीतराग धर्म की आराधना में समाया हुआ है। मृत्यु जीवन का सबसे बड़ा सत्य है। जो साधक समय रहते इस सच्चाई को स्वीकार कर लेते हैं वह फिर इस नश्वर नाशवान संसार में नहीं फंसते हुए संयम की शरण ग्रहण कर अपनी आत्मा को मुक्ति मंजिल की ओर बढ़ा देते हैं।

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