न मंदिर की छत, न दीवारें, फिर भी यहां आस्था की सबसे ऊंची है छाया…. जानें बाबा बटुकेश्वर धाम की कहानी
Unique Shiv Temple: छत्तीसगढ़ के प्राचीन मंदिर श्रद्धा, परंपरा, इतिहास और संस्कृति का अद्भुत संगम हैं। हर मंदिर में कोई न कोई विशेषता है जो उसे औरों से अलग बनाती है। कहीं नदी के किनारे, कहीं घने जंगलों में, तो कहीं ऊंची पहाड़ियों पर। यह मंदिर केवल आध्यात्मिक शांति ही नहीं देते, बल्कि पर्यावरण और आस्था का गहरा मेल भी दर्शाते हैं।
बाबा बटुकेश्वर महादेव का मंदिर (फोटो सोर्स- Social Media)
Unique Shiv Temple: छत्तीसगढ़, जिसे “देवभूमि” भी कहा जाता है, केवल प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक विविधता के लिए ही नहीं, बल्कि अपने प्राचीन मंदिरों और धार्मिक आस्थाओं के लिए भी पूरे भारत में जाना जाता है। यहां हर गांव, हर नगर, हर नदी और हर जंगल में कोई न कोई ऐसा मंदिर अवश्य मिल जाएगा, जो इतिहास, पौराणिकता और जनश्रुति से जुड़ा हुआ है।
यहां के मंदिर केवल पूजा-पाठ के स्थान नहीं हैं, बल्कि ये श्रद्धा, इतिहास, स्थापत्य कला और समाज की गहराइयों से जुड़े हुए प्रतीक हैं। ठीक इसी तरह धमतरी जिले के बाबा बटुकेश्वर महादेव का मंदिर, तो आइए जानें इसके बारे में…
300 साल से बरगद की जड़ों के नीचे विराजे हैं बाबा
छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में एक ऐसी अनोखी आस्था की मिसाल देखने को मिलती है, जो न केवल श्रद्धालुओं के विश्वास का प्रतीक है, बल्कि प्रकृति और आध्यात्म के गहरे जुड़ाव को भी दर्शाती है। यह स्थान है – बाबा बटुकेश्वर धाम, जहां एक विशाल और लगभग 300 साल पुराना बरगद का पेड़ है, जिसकी जड़ों के नीचे भगवान शिव का दिव्य स्वरूप “बाबा बटुकेश्वर” के रूप में विराजमान है।
नागा साधुओं ने की थी शिवलिंग की स्थापना
मान्यता है कि आज से करीब 300 साल पहले नागा साधुओं ने शिवलिंग की स्थापना की थी। बटुकेश्वर महादेव मंदिर में शिवलिंग बटवृक्ष के बीच में है। यह 300 साल पुराना मंदिर है। श्री बटुकेश्वर महादेव मंदिर समिति के सदस्य घनाराम सोनी ने बताया कि पहले शिव मंदिर था। बरगद का पौधा उग आया। यह पौधा धीरे-धीरे बड़ा रूप लेते गया। शिव लिंग के चारों ओर से घेर लिया। एक ओर से दरवाजे समान रास्ता दिया। तब से मंदिर को बटुकेश्वर महादेव कहा जाने लगा।
1975 में सर्वप्रथम मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया था
बटुकेश्वर महादेव मंदिर समिति से जुड़े घनाराम सोनी, देवेन्द्र थवाइत, संजय यादव, सुखांत मिश्रा, राजकुमार फुटान आदि ने बताया कि शिवलिंग विशाल बरगद पेड़ के नीचे स्थापित है। इसी विशाल बरगद वृक्ष के कारण शिवलिंग को बटुकेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। उन्होंने बताया कि 1975 में स्व. रामनारायण मिश्रा (बट्टू महाराज) ने सर्वप्रथम मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। पश्चात 1982 में स्व. मुन्नालाल ग्वाल ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। वर्तमान में जनसहयोग से मंदिर का जीर्णोद्धार कार्य कराया जा रहा है। जीर्णोद्धार कार्य में अब तक 20 से 25 लाख रूपए खर्च हो चुके हैं।
नागा साधुओं का ध्यान खींचा
शहर के बीचोबीच बरगद का सैकड़ों साल पुराना पेड़ है, जिसकी जड़ें जमीन से 4 फीट ऊपर शंकुकार में फैलते हुए जमीन से मिलती हैं। इसकी खोखली जगह पर मंदिर का आकार उभर आया है। यही वजह है कि 300 साल पहले धमतरी होकर दंतेश्वरी माई के दर्शन के लिए दंतेवाड़ा जा रहे नागा साधुओं का ध्यान खींचा और पवित्र वृक्ष की जड़ से बने आकर्षक मंदिर में बाबा बटुकेश्वर नाम से शिवलिंग की स्थापना की।
शिवजी के साथ कीर्तिमुख, अन्नपूर्णा माता भी विराजमान
वर्तमान में मंदिर के पुजारी नरेन्द्र वैष्णव बटुकेश्वर महादेव की पूजा-अर्चना कर रहे हैं। उनकी दूसरी पीढ़ी पुजारी के रूप में सेवा दे रहे हैं। मंदिर समिति के सदस्यों ने बताया कि मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए जब खुदाई की गई, तो बड़े-बड़े चूना पत्थर निकले हैं। मंदिर के दोनों ओर स्तंभ भी हैं। यह ऐसा इकलौता मंदिर है जहां गर्भगृह में भगवान शिव, नंदी महाराज, कीर्तिमुख, अन्नपूर्णा माता, भगवान गणेश, कार्तिकेय और दक्षिणमुखी हनुमान जी एक साथ विराजमान हैं। बताया गया कि भगवान शिव के साथ अन्नपूर्णा माता की स्थापना प्राचीन मंदिरों में ही देखने को मिलता है।
कालसर्प दोष से मिलती है शांति
बटुकेश्वर महादेव शिवलिंग में एक ही पत्थर में सर्पराज विद्यमान है इसलिए यहां कालसर्प योग शांति पूजन भी होता है। कालसर्प दोष से पीड़ित व्यक्ति इस मंदिर में पूरी आस्था और विश्वास के साथ मत्था टेकने, जल चढ़ाने तथा शांति पूजा कराने के लिए आते हैं। आज ऐसे कई भक्त हैं, जिनकी मनोकामना बटुकेश्वर महादेव ने पूरी की है। किसी प्रकार का कष्ट या संकट से घिरा व्यक्ति इस मंदिर में आकर शांति प्राप्त करता है।
हर सोमवार को लगती है भक्तों की भीड़
सिद्ध मान्यता होने के चलते सावन के सोमवार पर दूर-दराज से श्रद्धालु यहां बाबा बटुकेश्वर के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। भगवान शिव का यह अनोखा धाम विशेष रूप से सोमवार को भक्तों से गुलजार रहता है। श्रद्धालु दूर-दूर से जल, बेलपत्र और दूध चढ़ाकर बाबा का पूजन करते हैं। श्रावण मास में यहां विशेष भीड़ उमड़ती है, जब कांवड़िए और शिवभक्त जलाभिषेक के लिए कतारों में लगते हैं। यह दृश्य बेहद भक्तिमय और अद्भुत होता है।
बाबा बटुकेश्वर और ग्रामवासियों का संबंध
यह स्थान केवल एक धार्मिक स्थल ही नहीं बल्कि गांववालों के जीवन का अभिन्न हिस्सा है। किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत यहां बाबा के पूजन से होती है। ग्रामीणों का अटूट विश्वास है कि बाबा की कृपा से गांव में कभी कोई बड़ा संकट नहीं आया। विवाह, नामकरण, मुंडन जैसे संस्कारों में यहां पूजा करना परंपरा बन गई है।
पर्यावरण और अध्यात्म का संगम
बाबा बटुकेश्वर धाम न केवल धार्मिक रूप से बल्कि पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से भी प्रेरणास्रोत है। विशालकाय बरगद वृक्ष जो वर्षों से इस धाम का संरक्षक बना हुआ है, यह संदेश देता है कि प्रकृति और ईश्वर दोनों का संरक्षण हमारी जिम्मेदारी है। यह धाम इस बात का जीवंत उदाहरण है कि कैसे प्रकृति के बीच आध्यात्मिक जीवन को समृद्ध किया जा सकता है।
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