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दमोह

ट्रेन की वजह से दोनों पैर कटे, तो स्टेशन पर ही डाला डेरा, मौत तक रहने की जिद

दमोह के रेलवे स्टेशनों पर आर्थिक रूप से कमजोर एक वर्ग के लोगों को अक्सर भीख मांगते हुए देखा जाता है। इन सभी की अपनी-अपनी कहानियां हैं। दमोह स्टेशन पर यात्रियों पर आश्रित अरविंद की कहानी फिल्मी है, जो भावुक करने वाली है। अरविंद दिव्यांग है, जिसके दोनों पैर नहीं हैं। शरीर का एक हिस्सा […]

दमोहJun 12, 2025 / 02:06 am

हामिद खान

ट्रेन की वजह से दोनों पैर कटे, तो स्टेशन पर ही डाला डेरा, मौत तक रहने की जिद

ट्रेन की वजह से दोनों पैर कटे, तो स्टेशन पर ही डाला डेरा, मौत तक रहने की जिद

दमोह के रेलवे स्टेशनों पर आर्थिक रूप से कमजोर एक वर्ग के लोगों को अक्सर भीख मांगते हुए देखा जाता है। इन सभी की अपनी-अपनी कहानियां हैं। दमोह स्टेशन पर यात्रियों पर आश्रित अरविंद की कहानी फिल्मी है, जो भावुक करने वाली है। अरविंद दिव्यांग है, जिसके दोनों पैर नहीं हैं। शरीर का एक हिस्सा ही बचा है। एक साल पहले आम लोगों की तरह ही था।

मजदूरी कर करते थे परिवार का भरण पोषण

मजदूरी कर अपनी मां का भरण पोषण करता था, लेकिन एक साल पहले दुर्भाग्यवश वह ट्रेन हादसे का शिकार हो गया। इस घटना में उसने अपने दोनों पैर गंवा दिए। बमुश्किल जान बच पाई। आत्मविश्वास खो चुके अरविंद ने फैसला किया कि अब वह स्टेशन पर ही दम तोड़ेगा। पिछले एक साल से वह मुख्य गेट के बाहर एक किनारे पर पड़ा हुआ है और मौत का इंतजार कर रहा है।

ट्रायसाईकिल के लिए नहीं किया आवेदन

दिव्यांगों को समाज की मुख्यधारा में वापस लाने के लिए ढेरों योजनाएं चल रही हैं। जब अरविंद से पूछा कि तुमने सामाजिक न्याय विभाग से ट्रायसाईकिल की मांग की है, तो उसका कहना था कि आत्मविश्वास पूरी तरह से खत्म हो गया है। उसे समझ आ गया है कि वह किसी काम का नहीं बचा है। इस वजह से उसने कोई आवेदन नहीं किया।

मां पर बोझ नहीं बनना चाहता हूं

पथरिया के पिपरौधा निवासी अरविंद अहिरवार 35 की दर्द भरी कहानी में एक त्याग भी छिपा है। उसने बताया कि उसकी मां मजदूरी करती है। उसे संभालने की जगह उस पर बोझ नहीं बनना चाहता हूं। इस कारण से पिछले एक साल से दमोह स्टेशन पर पड़ा हूं। जब कभी मन होता है तो एक दो दिन के लिए गांव चला जाता हूं और मां से मिलकर लौट आता हूं।

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