माइक्रो ब्लॉक: नवाचार से हरियाली की क्रांति
छतरपुर के डीएफओ सर्वेश सोनवानी के नेतृत्व में वन विभाग पिछले वर्ष से माइक्रो लेवल पर काम कर रहा है। विशेष रूप से पथरीले और जल की कमी वाले क्षेत्रों में माइक्रो ब्लॉक बनाकर पौधरोपण किया जा रहा है। यह तकनीक छोटे-छोटे गड्ढों (ब्लॉकों) के माध्यम से बारिश के पानी को रोककर जमीन में नमी बनाए रखने का कार्य करती है। इन ब्लॉकों में भरे पानी से पौधों को आवश्यक नमी मिलती है, जिससे पौधे जिंदा रहने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। यह तकनीक खास तौर पर उन इलाकों में कारगर सिद्ध हुई है, जहां पहले लाखों पौधे लगाने के बाद भी वे पानी और देखभाल की कमी से नष्ट हो जाते थे।
कम घने इलाकों को सघन वनों में बदलने की योजना
छतरपुर जिले के ऐसे क्षेत्र, जहां पेड़-पौधे कम हैं, वहां विशेष पौधरोपण अभियान चलाए जा रहे हैं। इस वर्ष बकस्वाहा क्षेत्र में 113 हेक्टेयर भूमि पर रोपण का लक्ष्य रखा गया है। लवकुशनगर और बड़ामलहरा को भी इस विशेष योजना में शामिल किया गया है। बकस्वाहा में पिछले साल आग की घटनाओं से कई पौधे नष्ट हो गए थे, इसलिए इस बार वहां और अधिक सघन वृक्षारोपण किया जा रहा है। इसके अलावा इन क्षेत्रों के लिए अलग से बजट जारी कर वन विभाग ने स्पष्ट कर दिया है कि इस बार केवल पौधरोपण नहीं, बल्कि उनके संरक्षण और वृद्धि पर भी पूरा ध्यान रहेगा।
संरक्षण में भागीदारी: समितियां और सामुदायिक योगदान
जिले के 1.5 लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र को 6 वन परिक्षेत्रों में विभाजित किया गया है। अक्टूबर 2001 से चल रहे संयुक्त वन प्रबंधन कार्यक्रम के तहत 540 ग्रामों में 281 समितियां गठित की गई हैं, जिनमें 33 प्रतिशत महिलाएं अध्यक्ष के रूप में कार्यरत हैं। इन समितियों में कुल मिलाकर 5 लाख से अधिक ग्रामीण शामिल हैं, जो पौधों के संरक्षण, जंगल की निगरानी और पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
पौधरोपण का प्रभाव: वन्यजीवों की संख्या और जैव विविधता में वृद्धि
पौधरोपण के कारण अब छतरपुर न केवल हरियाली से आच्छादित हो रहा है, बल्कि यह वन्यजीवों के लिए एक सुरक्षित और अनुकूल आवास भी बनता जा रहा है। पन्ना टाइगर रिजर्व की सीमा से लगे इन जंगलों में अब बाघों का विचरण बढ़ा है। इसके साथ ही गिद्ध गणना के आधार पर भी छतरपुर की स्थिति प्रदेश के अन्य जिलों की तुलना में बेहतर मानी गई है। जंगल अब केवल वृक्षों का समूह नहीं, बल्कि एक जीवंत पारिस्थितिक तंत्र के रूप में विकसित हो रहा है, जो जैव विविधता को बढ़ावा दे रहा है और स्थानीय समुदायों के लिए आर्थिक और सामाजिक रूप से लाभकारी सिद्ध हो रहा है।
वित्तीय और भौतिक संसाधन: हरियाली के लिए समर्पित बजट
इस वर्ष पौधरोपण अभियान के लिए लगभग 20 करोड़ रुपए की राशि स्वीकृत की गई है। यह धनराशि न केवल पौधरोपण के लिए, बल्कि संरक्षण, जल व्यवस्था और निगरानी के लिए भी उपयोग की जाएगी। हर पौधा, जो लगाया जाएगा, उसकी सुरक्षा और वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए संसाधनों की कोई कमी नहीं छोड़ी जाएगी।
एक पौधा मां के नाम”: जन भागीदारी से जुड़ता अभियान
वन विभाग द्वारा चलाई जा रही एक पौधा मां के नाम मुहिम आम नागरिकों को भी इस अभियान से जोड़ रही है। डीएफओ सर्वेश सोनवानी का कहना है कि अगर हर व्यक्ति जन्मदिन या अन्य विशेष अवसर पर एक पौधा लगाए और उसकी देखभाल करे, तो आने वाले कुछ वर्षों में जिले को हरा-भरा बनाने में किसी भी तरह की रुकावट नहीं आएगी। उन्होंने लोगों से अपील की कि वे अपने घर, खेत या आस-पास के क्षेत्र में पौधे लगाएं और पर्यावरण संरक्षण में अपनी भूमिका निभाएं। यह एक ऐसा अभियान है, जो व्यक्तिगत भावना को सामुदायिक हित से जोड़ता है। हरियाली की दिशा में लगातार बढ़ते कदम वर्ष पौधरोपण (लाख में) 2019 4.25 2020 5.61 2021 4.10 2022 4.90 2023 7.30 2024 9.00
2025 (लक्ष्य) 12.72