scriptSholay: 50 साल बीत जाने के बाद भी ‘शोले’ फिल्म के बारे में लोग अब भी नहीं जानते ये बातें | Sholay 50th Anniversary: People still don't know these things about the film Sholay | Patrika News
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Sholay: 50 साल बीत जाने के बाद भी ‘शोले’ फिल्म के बारे में लोग अब भी नहीं जानते ये बातें

50 Years Of Sholay: शोले के 50 साल शोले के चरित्र अभिनेता-1 जगदीप से लेकर एके हंगल तक शोले के वे कलाकार, जो आज भी याद आते हैं सिर्फ हीरो नहीं, शोले के हर चरित्र ने बनाई पहचान 15 अगस्त 1975 को, भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक ऐसा अध्याय जुड़ा जिसने सब कुछ बदल दिया। यदि आप मौसी, रहीम चाचा से लेकर साम्भा तक का अद्भुत किरदार निभाने वाले एक्टर्स के बारे में जानना चाहते हैं, तो पढ़िए पूरी खबर।

मुंबईAug 05, 2025 / 12:21 pm

Saurabh Mall

Sholay Movie 50 years Celebration Story

शोले के 50 साल (फोटो सोर्स: गूगल प्ले)

Sholay Movie Real Story: रमेश सिप्पी के निर्देशन और सलीम-जावेद की बेमिसाल लेखन से सजी फिल्म ‘शोले’ सिर्फ एक ब्लॉकबस्टर नहीं बनी, बल्कि यह एक ऐसा सांस्कृतिक प्रतीक बन गई जिसके किरदारों ने दशकों तक दर्शकों के दिलों पर राज किया।
यह कहना गलत नहीं होगा कि ‘शोले’ की सफलता का श्रेय सिर्फ इसके नायक-नायिकाओं को नहीं, बल्कि फिल्म के हर एक चरित्र अभिनेता को जाता है। कई बार कहा जाता है ये हीरो है तो फिल्म कमाल होगी, ये सुपरस्टार है। मगर आप कोई भी बड़ी या अच्छी फिल्म देख लें चरित्र अभिनेता बिना हीरो अधूरा लगेगा।
शोले जैसी फिल्मों की खासियत है कि इसमें हर चरित्र पर ध्यान दिया गया है। रमेश सिप्पी और सलीम जावेद ने एक-एक चरित्र पर ध्यान दिया, जिसको जितना भी काम दिया, उसे यादगार बना दिया। कइयों को तो आज भी लोग इसीलिए जानते है की अरे ये तो शोले में था…।

जगदीप का रोल

जगदीप का रोल बाद में जोड़ा गया जगदीप ने शुरुआत हीरो के रूप में की फिर जितेंद्र के साथ साइड हीरो और कॉमेडी करने लगे। फिल्म बनने के बाद लगा की इसमें कुछ मजेदार सीन डाले जाएं तो उन्होंने सुरमा भोपाली के लिए जगदीप से संपर्क किया। जगदीप ने मना कर दिया। फिल्म बनने के बाद मेरा क्या काम फिर निर्माता ने उन्हें फिल्म ब्रह्मचारी के रोल के पैसे भी नहीं दिए। आखिरकार छोटे से रोल के लिए उनकी पूरी फीस देने पर राजी हुए और उनका रोल ऐतिहासिक बन गया। इसमें उनकी जय वीरू के साथ कव्वाली भी थी मगर फिल्म लम्बी होने के कारण वो फिल्मायी नहीं गई।

विकास आनंद का किरदार

विकास आनंद ने फिल्म में जेलर का किरदार निभाया जो ठाकुर को जय और वीरू के बारे में जानकारी देता है। ‘गरम हवा’ से इन्होंने अपना कॅरियर शुरू किया शोले के अलावा ‘दीवार’, ‘हेरा फेरी’, दूसरा आदमी, दोस्ताना, मशाल, ‘मुकद्दर’ का सिकंदर, लोहा, मर्द की जुबान, बोल राधा बोल, आंखे, क्रांतिवीर आदि सेकड़ों फिल्मों मे चरित्र अभिनेता के रूप मे काम करते। इनके चेहेरे के कारण इन्हें ज्यादातर जज बनाते या फिर पुलिस डिपार्टमेंट के किसी पद पर। इन्होंने कुछ टीवी सीरियल में भी काम किया।
अरविन्द जोशी ने ठाकुर बलदेव सिंह के बड़े बेटे का रोल निभाया जो एक्टर शर्मन जोशी के पिता थे। उन्होंने कई हिंदी और गुजराती फिल्मों मे काम किया।

सत्येन कप्पू का रामलाल का किरदार

सत्येन कप्पू ने रामलाल का किरदार निभाया जो ठाकुर के हाथ कटने पर उनका सभी काम देखते है। काबुलीवाला और बंदनी जैसी फिल्मों से शुरुआत की 70 से 90 के दशक में लगभग हर दूसरी फिल्म में नजर आते थे। लगभग 400 फिल्में की जिनमें धर्मेंद्र, राजेश खन्ना, अमिताभ और मिथुन सभी कलाकारों के साथ काम किया।
इख्तेखार ने ठाकुर के मित्र इंस्पेक्टर खुराना और जया भादूड़ी के पिता का रोल निभाया। वर्ष 1937 मे कज्जाक की लड़की फिल्म से 1993 में काला कोट तक सेकड़ों फिल्मों में काम किया। उन्होंने भी ज्यादातर फिल्मों में पुलिस डिपार्टमेंट से सम्बंधित रोल निभाए।

शोले में उनका रहीम चाचा का रोल

ए के हंगल का किरदार ए के हंगल ने स्वतंत्रता सेनानी के रूप में जिंदगी की शुरुआत की, आजादी के बाद थिएटर से जुड़ेे, इसके बाद तीसरी कसम से फिल्मी दुनिया में आए, यहां शोले के अलावा आईना, शौकीन, आंधी, अवतार, चितचोर, अर्जुन, सागर, लगान आदि फिल्मों मे महत्त्वपूर्ण रोल निभाए।
टीवी पर जुबान संभाल के, चंद्रकांता और उनका आखरी सीरियल मधुबाला में छोटा सा रोल निभाया। शोले में उनका रहीम चाचा का रोल बहुत महत्त्वपूर्ण हो जाता है। जब गब्बर उनकी बेटे अहमद को मार देता है, तो वे आते हुए कहते है,’ इतना सन्नाटा क्यों है भाई’ तब वीरू उन्हें उनके बेटे की लाश के पास ले जाते है, वे लाश को छूकर अहमद को पहचान कर रोते हैं। जब गांव वाले जज-वीरू को गब्बर के हवाले करने के लिए कहते है की ‘हम इस मुसीबत का बोझ नहीं उठा सकते’ तब चाचा कहते है ‘कौन ये बोझ नहीं उठा सकता जानते हो दुनिया का सबसे बड़ा बोझ क्या होता है, बाप के कंधों पर बेटे का जनाजा, मैं बूढा ये बोझ उठा सकता हूं तुम एक मुसीबत का बोझ नहीं उठा सकते। इज्जत की मौत जिल्लत की जिंदगी से कई अच्छी है’ उसके बाद नमाज के लिए जाते हुए कहते है ‘आज जाकर पूछूंगा उस खुदा से मुझे दो-चार बेटे और क्यों नहीं दिए इस गांव पर शहीद होने के लिए’ आज तक के हिंदी सिनेमा मे सबसे ज्यादा नम आंखों से तालिया इस डायलॉग पर बजी थी और आज भी बज रही है।

साम्भा का किरदार जबरदस्त

मेक मोहन शूटिंग के लिए 25 बार मुंबई गए बेंगलूरु मेक मोहन का रोल केवल टेकरी पर बैठ गब्बर की मदद करने वाले साम्भा का था। कुल जमा तीन डायलॉग। इतने से रोल के लिए 25 से ज्यादा बार मुंबई से बंगलौर (बेंगलूरु) जाना पड़ा। अपने रोल से नाराज थे,
फिल्म इतनी बड़ी थी इसलिए छोड़ भी नहीं सकते। रिलीज के बाद शोले ब्लॉकबस्टर हो रही थी। मगर इन्होंने ध्यान नहीं दिया। मगर धीरे धीरे ये जहां जाते लोग साम्भा-साम्भा कहकर इन्हें घेरने लगे। तब इन्हे अहसास हुआ की सलीम जावेद और रमेश सिप्पी क्यों उन्हें कहते थे, रोल छोटा है, पर तुम इसी शोले के नाम से जाने जाओगे।

लीला मिश्रा बनी थीं मौसी

लीला मिश्रा ने मां, दादी और चाची के रोल किये मगर शोले से उनपर मौसी का ठप्पा लग गया। अनमोल घड़ी, आवारा, लाजवंती, दोस्ती, चितचोर, राम और श्याम, नानी मां, सरगम सदमा, दांता आदि इनकी यादगार फिल्में हैं। शोले में जय और मौसी के संवाद आज भी लोकप्रिय है, वही बसंती से भी इनकी नौकझोंक मजेदार है।
राज किशोर को हम पड़ोसन की किशोर कुमार की मण्डली के सदस्यों में से एक के रूप में जानते हैं। इसमें जेल में कैद जोगे है का चरित्र बखूबी निभाया।

इसके अलावा दीवार, करिश्मा कुदरत का, राम और श्याम, हरे रामा हरे कृष्णा, करण अर्जुन मे भी छोटे छोटे किरदार निभाए।

सचिन का महत्त्वपूर्ण किरदार

सचिन का महत्त्वपूर्ण किरदार बाल कलाकार सचिन ने शोले से महीने भर पहले ही युवा के रोल मे गीत गाता चल से धूम मचाई थी। इस फिल्म में उनका छोटा मगर महत्त्वपूर्ण अहमद का किरदार था। जिसे गब्बर मार देता है। इससे पहले उनकी उनकी पिता रहीम चाचा से नौक झोंक मजेदार है। सिप्पी फिल्म्स की ब्रह्मचारी में भी उन्होंने बाल कलाकार का रोल किया था। इसके बाद उन्होंने अभिनेता, निर्माता, निर्देशक, लेखक और एंकर के रूप मे खूब काम किया, वे आज भी एक्टिव है।
केशटो मुखर्जी ने ज्यादातर फिल्मों में शराबी के रोल किये इसमें भी हरी राम नाई का किरदार निभाया जो अंग्रेजों के जमाने के जेलर का मुंह लगा है। इनके संवाद से ज्यादा इनके एक्सप्रेशन से हंसी आती है। इनकी जुल्फे और मूछें भी मजेदार थीं।
मै रवीन्द्र जोधावत, अजमेर में मेरा रहवास है। पेशे से इंजीनियर मगर मेरा पैशन है सिनेमा और संगीत। लोग सिनेमा देखते है मै जीता हूं। पुरानी हो या नई, एक्शन हो या कॉमेडी, संगीतमय हो या सामाजिक सभी तरह की फ़िल्में पसंद है। वैसे धर्मेंद्र का फैन हूँ मगर कोई भी कलाकार हो सभी को पसंद करता हूँ। जरुरी नहीं एक्टर ही हो फ़िल्म से जुड़ा हर तरह का व्यक्ति निर्देशक से टिकट चेकर तक। आज सिनेमा में वो बात नहीं जो 70 के दशक में थी। उसमे भी शोले का जूनून अलग ही था। पहली बार बीकानेर के विश्वज्योति में पुरे परिवार के साथ देखी उसके बाद बीकानेर, गंगानगर, कोटा, जयपुर, अजमेर के सिनेमाघर के अलावा मिनी थिएटर, वीडियो और टीवी पर सैकड़ो बार देख ली। इसके डायलॉग वाले दो केसेट घर पर थे जिन्हे नियमित सुनकर एक एक सीन याद हो गया। शोले के पच्चास साल पुरे होने पर आपके लिए प्रस्तुत है विशेष श्रँखला

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