जबकि नीति स्पष्ट रूप से कहती है कि यह राशि केवल नव नियुक्त पीएचडी धारक सहायक प्राध्यापकों को एक बार शोध परियोजना के लिए दी जा सकती है। कुलपति प्रो. आलोक चक्रवाल के कार्यकाल में 2 करोड़ 59 लाख रुपए का खर्च हुए।
विश्वविद्यालय प्रशासन ने इसे ‘शोधोन्मुख गतिविधि’ बताकर जायज ठहराने की कोशिश की, लेकिन दस्तावेजों में ऐसी कोई स्पष्टता नहीं है। शोध के नाम पर मिली ग्रांट से विश्वविद्यालय में ‘समारोह संस्कृति’ का पोषण किया जा रहा है, जबकि वास्तविक पीएचडी कर रहे शोधार्थी फंड के अभाव में संघर्ष कर रहे हैं। शेष ञ्चपेज ९
मैदान की सफाई और प्रचार भी खर्चसीड मनी का उपयोग शोध की जगह आयोजनों पर हुआ। इसमें खेल मैदान सफाई व ग्रेडिंग के लिए प्रो. राठौर, डॉ. सरदार व ओ.पी. गांगेय को 1.62 लाख, सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए प्रो. प्रवीण मिश्रा को 13 लाख, कोविड देखभाल के लिए के.पी. नामदेव को 85 हजार, जागरूकता के लिए सुनील जैन को 4 हजार।
राज्यभाषा प्रशिक्षण के लिए अखिलेश तिवारी को 7 हजार, ट्रेनिंग हेतु पुष्पराज को 15 हजार, बौद्धिक संपदा जागरूकता में सूर्यभान को 1 लाख, जल दिवस 1 लाख, उद्यमिता के लिए 1.6 लाख, अमृत महोत्सव 72 हजार, गुरु घासीदास जयंती 24 हजार व योग दिवस प्रचार के लिए 5.79 लाख जारी किए गए।
किसी को 1 तो किसी को 5 हजार तक बांटे गए
बांस वृक्षारोपण के नाम पर 12 लोगों को 48 हजार रुपए बांट दिए गए हैं। किसी को 1 हजार रुपए तो किसी को 5 हजार दिए गए हैं। जुम्बा और एरोबिक के लिए 13 हजार रुपए, महिला दिवस के लिए भी 1.27 लाख रुपए सीड मनी से बांटे गए हैं।
छोटी-मोटी गलती सबसे होती है
इतनी बड़ी यूनिवर्सिटी है। यहां छोटी-मोटी गलतियां पूर्व के कुलपतियों ने भी की हैं। कभी-कभी ऐसा होता भी है। भर्ती सहित अन्य मामलों में यह देखा गया है। लेकिन हम सीड मनी बांटने में पूरी पारदर्शिता और नियमों को देखते हुए राशि आवंटित करते हैं। इसमें गलती की गुंजाइश नहीं है। लेकिन इसका अवलोकन किया जाएगा।- प्रो. आलोक चक्रवाल, कुलपति, सेंट्रल यूनिवर्सिटी, बिलासपुर