सीपत थाना क्षेत्र के ग्राम खैरा निवासी किसान मेहरचंद पटेल ने 2013 में सिविल लाइन थाने में लिखित शिकायत की। शिकायत में बताया कि उसके पास ग्राम खैरा में 8.85 एकड़ कृषि भूमि थी। बिलासपुर जिला न्यायालय में एक मामले में उसके वकील ने किसान को जमानत लेने के बहाने बुलाया। इस दौरान नशीला पदार्थ खिलाकर कर अपने नाम पर 8.85 एकड़ जमीन अपने नाम करा ली। भू स्वामी को इसकी जानकारी होने पर मार्च 2013 में सिविल लाइन थाने में लिखित शिकायत की।
शिकायत की जांच में पुलिस ने पाया कि वकील ने शिकायतकर्ता के फर्जी हस्ताक्षर कर उसकी जमीन का अपने नाम 2011 में पंजीयन कराया है। जांच उपरांत पुलिस ने मामले में वकील और गवाह सीताराम कैवर्त, 22 बिन्दु जारी करने वाले तत्कालीन पटवारी अशोक, दस्तावेज लेखक देवनाथ यादव के खिलाफ धोखाधड़ी का जुर्म दर्ज कर न्यायालय में चालान प्रस्तुत किया। सत्र न्यायालय बिलासपुर ने फरवरी 2016 में सभी को विभिन्न धारा में 3 वर्ष कैद एवं अर्थदंड की सजा सुनाई।
हस्ताक्षर भी नकली पाए गए
अपीलकर्ता ने दावा किया कि बिक्री विलेख को वास्तविक रूप से निष्पादित किया और अपने नाम में परिवर्तन करवाया। राजस्व अभिलेखों की जांच की और अतिरिक्त तहसीलदार से आदेश प्राप्त किया। रिपोर्ट में शिकायतकर्ता के हस्ताक्षरों की जांच की गई। पाया कि बिक्री विलेख में हस्ताक्षर शिकायतकर्ता मेहरचंद के नहीं थे।
इसलिए, अपीलकर्ता वकील की संलिप्तता विधिवत साबित हुई कि उसने जाली बिक्त्रस्ी विलेख तैयार किया था। शिकायतकर्ता को धोखा दिया गया है। इसी प्रकार उसके सहयोगी सीताराम कैवर्त गवाह की भी अपराध में संलिप्तता सिद्ध हुई। इस आधार पर कोर्ट ने अपीलकर्ता वकील एवं गवाह सीताराम कैवर्त की अपील को खारिज करते हुए अदालत के निर्णय को यथावत रखा है।
कोर्ट ने पटवारी अशोक ध्रुव व दस्तावेज लेखक देवनाथ यादव की अपील पर कहा कि पटवारी ने सरकारी दायित्व को पूरा करते हुए 22 बिन्दु जारी किया किन्तु यह सिद्ब नहीं है कि उसने 22 बिन्दु किसके हाथ में दिया है। इसी प्रकार दस्तावेज लेखक ने भी बताए अनुसार विक्त्रस्य विलेख तैयार किया।शिकायतकर्ता ने उसके सामने हस्ताक्षर नहीं किया था। इस आधार पर कोर्ट ने दोनो को संदेह का लाभ देते हुए दोषमुक्त किया है।