बता दें कि, ये मध्य प्रदेश का बहुचर्चित व्यापमं घोटाला भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज में साल 2009 की एमबीबीएस प्रवेश परीक्षा से जुड़ा है, जिसमें फर्जी अभ्यर्थियों और सॉल्वरों की मदद से एडमिशन दिलाने का षड्यंत्र रचा गया था। इनमें 4 उम्मीदवार विकास सिंह, कपिल पारटे, दिलीप चौहान, प्रवीण कुमार थे, जिन्होंने मेडिकल प्रवेश के लिए सॉल्वर के जरिए परीक्षा दी थी। 5 सॉल्वर नागेन्द्र कुमार, दिनेश शर्मा, संजीव पांडे, राकेश शर्मा, दीपक ठाकुर ऐसे थे, जिन्होंने असली परीक्षार्थियों की जगह परीक्षा दी, जबकि एक बिचौलिया सत्येन्द्र सिंह इस पूरे नेटवर्क के संचालन का मास्टरमाइंड था।
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मामले का खुलासा होने पर राजधानी के कोहेफिजा थाने में वर्ष 2012 में एफआईआर दर्ज की गई थी, जिसपर अब सीबीआई की विशेष अदालत ने आरोपियों ने 419, 420, 467, 468, 471 और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दोषी माना है। कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए ये टिप्पणी की कि, शिक्षा और चिकित्सा जैसे गंभीर क्षेत्र में इस तरह की धोखाधड़ी समाज के लिए खतरनाक है। इसे किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। मध्यप्रदेश में व्यापम घोटाला बहुचर्चित फर्जीवाड़ा है। इसमें बड़े पैमाने पर घोटाला हुआ था, जिसके अंदर सरकार की तरफ से आयोजित होने वाली कई भर्ती परीक्षा में अभ्यर्थी की जगह फर्जी अभ्यर्थियों ने परीक्षाएं दी थी। याद हो कि, व्यापमं घोटाला सामने आने के बाद कई अधिकारियों के साथ-साथ नेताओं तक पर इसकी जांच की आंच आई थी।