बजट नहीं, तो मलबा बनेगा साधन वर्तमान में विद्यालय प्रबंधन के पास इन जर्जर भवनों को गिराने के लिए कोई बजट नहीं है। ऐसे में अब विद्यालय विकास समितियों की बैठक में निर्णय लेकर नीलामी प्रक्रिया से भवनों को जमींदोज करने की योजना बनाई जाएगी। यदि भवन गिराने का कोई खर्च वहन नहीं कर सकता है, तो “काम के बदले मलबा” की नीति पर काम होगा। यानी जो ठेकेदार भवन को गिराएगा, वह मलबा अपने साथ ले जाएगा, या उसके बदले विद्यालय को कुछ आय उपलब्ध कराएगा।
भामाशाहों और ठेकेदारों से उम्मीद प्रशासन अब ऐसे भामाशाहों या ठेकेदारों की तलाश कर रहा है जो जनहित में आगे आकर जर्जर भवनों को ध्वस्त कर सकें। इस कार्य के लिए ठेकेदारों को खुली नीालमी बोली में आमंत्रित किया जाएगा। जो सबसे उपयुक्त शर्तों पर काम करेगा, उसे कार्य दिया जाएगा। विद्यालय विकास समिति को यह अधिकार दिया गया है कि वह अपनी बैठक में इस पर निर्णय लेकर कार्रवाई प्रारंभ करें।
विद्यालय विकास समितियों की भूमिका होगी अहम सुवाणा ब्लॉक के सीबीईओ डॉ. रामेश्वर प्रसाद जीनगर ने बताया कि शिक्षा के ढांचे को मजबूत बनाने के लिए अब कड़े कदम उठाए जा रहे हैं। न केवल जर्जर भवनों को गिराया जाएगा, बल्कि उससे विद्यालय को आर्थिक लाभ भी दिलाने की योजना तैयार की जा रही है। आने वाले दिनों में विद्यालय विकास समितियों की भूमिका इस दिशा में बेहद महत्वपूर्ण रहने वाली है। सभी विद्यालयों से प्रस्ताव भी तैयार करवाए जा रहे है।
आपदा प्रबंधन मद से मरम्मत योग्य भवनों को राहत एडीपीसी कल्पना शर्मा ने बताया कि जिन भवनों की स्थिति मरम्मत योग्य है, उनकी मरम्मत के लिए आपदा प्रबंधन मद से राशि जारी की जाएगी। ऐसे मामलों में प्राथमिकता के आधार पर कार्य किया जाएगा। लेकिन पूरी तरह से जर्जर भवनों को अब और जोखिम में नहीं रखा जाएगा।
सुरक्षा होगी प्राथमिकता स्कूलों में अध्ययनरत बच्चों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए अब प्रदेशभर में यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि कोई भी जर्जर कक्षा-कक्ष या भवन उपयोग में नहीं लिया जाए। जिन स्कूलों के पास वैकल्पिक भवन नहीं हैं, वहां पास के अन्य विद्यालयों में समायोजन की योजना बनाई जा रही है।